सुप्रभात जी
यह खेल विचित्र है यहँ पर कोई कृपण हैं तो कोई दाता कहलाते हैं, कोई ज्ञानी हैं तो कोई अज्ञानी हैं, कोई राज है तो कोई रंक है । इस प्रकार इस जगतमें अनेक विषमतायें हैं ।
हे ब्रह्मात्माओ ! तुम यह विचित्र खेल देखने मात्रके लिए आयी हो किन्तु यहाँ आकर मायाके जीवोंकी भाँति तुम भी मायामें ही हिलमिल गई । इनको तो यह नश्वर खेल नश्वर नहीं लगता है क्योंकि जलतरंगवत् ये सभी स्वयं भी मोह मायाकी ही सृष्टि है । वास्तवमें यह झूठी माया तुम सत्य आत्माओंको प्रभावित कर रहीं है । तुम स्वयं सत्य होते हुए भी स्वयंको न पहचान कर झूठी मायामें भूलने लगी हो । यह तो नश्वर होनेके कारण एक दिन मिटेगी ही किन्तु तुम्हें झूठा दाग लगा कर मिटेगी । इसलिए तुम जागृत हो जाओ...
प्रणाम जी
यह खेल विचित्र है यहँ पर कोई कृपण हैं तो कोई दाता कहलाते हैं, कोई ज्ञानी हैं तो कोई अज्ञानी हैं, कोई राज है तो कोई रंक है । इस प्रकार इस जगतमें अनेक विषमतायें हैं ।
हे ब्रह्मात्माओ ! तुम यह विचित्र खेल देखने मात्रके लिए आयी हो किन्तु यहाँ आकर मायाके जीवोंकी भाँति तुम भी मायामें ही हिलमिल गई । इनको तो यह नश्वर खेल नश्वर नहीं लगता है क्योंकि जलतरंगवत् ये सभी स्वयं भी मोह मायाकी ही सृष्टि है । वास्तवमें यह झूठी माया तुम सत्य आत्माओंको प्रभावित कर रहीं है । तुम स्वयं सत्य होते हुए भी स्वयंको न पहचान कर झूठी मायामें भूलने लगी हो । यह तो नश्वर होनेके कारण एक दिन मिटेगी ही किन्तु तुम्हें झूठा दाग लगा कर मिटेगी । इसलिए तुम जागृत हो जाओ...
प्रणाम जी
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