Thursday, October 22, 2015

सार तत्व

दोऊ दौड करत हैं, हिन्दू या मुसलमान।
ए जो उरझे बीच में, इनका सुंन मकान।।

हिन्दू और मुसलमान दोनों ही प्रमात्मा प्राप्तिके लिए परस्पर स्पर्धामें उतर आए हैं, किन्तु दोनों ही मूल घर (आनंद) तक पहुँच नहीं पाए तथा बीचमें ही फँस गए, कयोंकी इन्होने केवल शब्दो को और बाहरी आवरण को ही ग्रहण किया इस कीरण वे सार तत्व प्रमात्मा से दूर ही रह गये और उनका ध्यान झगडों में ही अटक गया है..इसलिय उनका ठिकाना शून्य तक ही रहा.
।।इन्द्रं मित्रं वरुणमग्निमाहुरथो दिव्य: स सुपर्णो गरुत्मान्।
एकं सद् विप्रा बहुधा वदंत्यग्नि यमं मातरिश्वानमाहु: ।।- ऋग्वेद (1-164-43)
भावार्थ :
जिसे लोग इन्द्र, मित्र, वरुण आदि कहते हैं, वह सत्ता केवल एक ही है; ऋषि लोग उसे भिन्न-भिन्न नामों से पुकारते हैं

शब्दजालं महारण्यं चित्तभ्रमणकारणम्।
अतः प्रयत्नाज्ज्ञातव्यं तत्त्वज्ञात्तत्त्वमात्मनः।।
(विवेक चूड़ामणि—६२)

शब्द जाल  तो चित्त को भटकाने वाला एक महान् बन है, इस लिए किन्हीं तत्त्व ज्ञानी महापुरुष से यत्न पूर्वक ‘आत्मतत्त्वम्’ (परमतत्व)को जानना चाहिए

पद गाए मन हरषियां, साषी कह्यां अनंद ।
सो तत नांव न जाणियां, गल में पड़िया फंद ॥

भावार्थ - मन हर्ष में डूब जाता है भजन गाते हुए, और कथा सुन्ने  में भी आनन्द आता है । लेकिन सारतत्व को नहीं समझा, और सारतत्व का मर्म न समझा, तो गले में फन्दा ही पड़नेवाला है | अर्थात बृह्म को जाने बिना कुछ भी करलो सब व्यर्थ है.

प्रणाम जी

No comments:

Post a Comment