Sunday, October 25, 2015

आपकी ही सत्ता है...

सुप्रभात जी

हे नाथ ! इस सृष्टि में दृष्टिगोचर सभी पदार्थों तथा उनके कारण रूप अदृश्य पदार्थों में भी सर्वत्र आपकी ही सत्ता है। इस सम्पूर्ण सृष्टि के बाहर (निराकार मण्डल) तथा इसके अन्दर सूक्ष्म से सूक्ष्म पदार्थों में भी आपकी ही सत्ता दृष्टिगोचर हो रही है। प्रकृति की इस सृष्टि से परे बेहद तथा परमधाम में भी सर्वत्र आपकी ही महिमा की लीला देखने में आ रही है। मुझे तो ऐसा लगता है कि कोई कहीं भी चला जाय, एक कण (अणु-परमाणु) भी आपकी सत्ता के बिना नहीं है।
हे प्रियतम ! आप जाहेरी (बाहरी) रूप में परमधाम से बाहर इस खेल में आये हैं तथा बातूनी (आन्तरिक)रूप में हमारे शाहरग से भी अधिक नजदीक हैं। सबसे अधिक महत्वपूर्ण बात यह है कि आप उससे भी परे हमारी परात्म के अन्दर आप ही विराजमान हैं। इस प्रकार मैं यही देखती हूँ कि चाहे परमधाम हो या यहां, सब जगह आप ही (मूल स्वरूप से और आवेश स्वरूप से) हैं।

प्रणाम जी

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