Monday, October 5, 2015

इनकी नजर में पतित हूँ ..

उल्टा एक चलत हों यामे ,मैं छोड़ी दुनिया की राह |

तोड़ी मरजाद बिगड़या विश्व थें ,मैं तो पतितों को पातसाह ||


(वाणी मेरे पीयू की )


वाणी को सिर्फ महामति से जोड़कर देखना सही नही होगा ..वाणी की हर चौपाई हम सब से सम्बन्ध रखती है ये सिर्फ महामति जी के जीवन से ही सम्बन्ध नही रखती अपितु हम सब की ही है और हमारे ही लिए है ये हमारा ही भूत वर्तमान और भविष्ये है ..
जबसे मेने दुनिया के कर्म कांड ,बहूदेव वाद ,नाम जाप , व अन्ये क्रियाएँ छोड़ी हैं दुनिया वाले मुझे कहने लगे है की ये तो उल्टा चलने लगा है..कयोंकि संसार समझता है की परमात्मा कही बाहर है जो किसी दिन हमसे मिलने आयेंगें उनहोने अपनी सब कृियाऐं इसी मार्ग पर लगा दी हैं ..भजन आदि भी इसी भाव के बना डाले है ..जो बाहर को जाते हैं पर परमात्मा(आनंद) तो विपरीत दिशा में है अर्थात अंदर हैं..
मेने  जड़ संसार से विमुख होकर अपने चेतन हृिदय मे खोज की व एक मात्र चेतन ब्रह्म को अपने ह्रदये में पाया..अब उस ब्रह्म ही मेरी सारी रीती प्रीति को बदल दिया है ये या तो मै जनता हु या वो ..इसे ये दुनिया वाले नही जान पाएंगे इसलिए इनकी नजर में पतित हूँ ..


प्रणाम जी

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