सराब मेरी सुराही का, सो रूहों मस्ती देवे पुरन।
दे इलम लदुन्नी लज्जत, हक बका अर्स तन।।
(श्री परमात्मा वाणी का रहस्य )
यहां सराब का मतलब आनंद हैं और सुराही का अर्थ अनंत आनंद का स्त्रोत परमात्मा का हृदये हैं जहाँ से अनंत आनंद का प्रवाह हम आत्माओ को प्राप्त होता हैं इसे श्यामा जी भी कहते हैं तो स्वयं परमात्मा हम आत्माओ को अपने हृदये याने श्यामा जी के दुआरा अनंत आनंद में डुबोये रख्ते हैं क्योंकि परमात्मा ने अपने हृदये को हमारे आत्म हृदये में जोड़ रखा हैं उनके और हमारे बीच की यही कड़ी श्यामा जी हैं जो की स्वयम परमात्मा का हृदये स्वरुप है उन्हें ही ईशक या आनंद की सुराही कहा गया हैं जिसमे परमात्मा के आनंद रूपी सराब लगातार भरती रहती हैं जिसका आनंद ब्रह्मात्माएँ निरंतर लेती रहती हैं यह श्यामा जी परमात्मा और हम आत्माओ का बड़ा शुक्ष्म संबंध हैं जिसे सांसारिक दृष्टि से नही समझा जा सकता और न ही सब्दो के अर्थ के दुआरा इसका अर्थ निकाला जा सकता हैं जैसे शराब को पिने वाला ही बता सकता हैं की इसका आनंद केसा हैं उसी प्रकार इस सम्बन्ध को वही जान पता हैं जो इस सुराही से शराब पी रहा हो उसे पता हैं की इस सुराही और सुराही में जहां से शराब आ रही हैं उस से हमारा क्या संबंध हैं इसे याने इस संबंध को ही इल्म कहा गया हैं इसका भी अपना ही नशा हैं यह इल्म रूपी शराब भी उसी सुराही से आती हैं और इन सबका आनंद हमारी प्रात्म और आत्म दोनों को मिल रहा हैं..यह भी बहोत गहन विषय है जिसको थोड़े मे ही
अनन्त को डालने का दुस्साहस किया गया है..पर कया करूं करवाने वाला भी वही है ...
..................." सुराही वाला "
प्रणाम जी
दे इलम लदुन्नी लज्जत, हक बका अर्स तन।।
(श्री परमात्मा वाणी का रहस्य )
यहां सराब का मतलब आनंद हैं और सुराही का अर्थ अनंत आनंद का स्त्रोत परमात्मा का हृदये हैं जहाँ से अनंत आनंद का प्रवाह हम आत्माओ को प्राप्त होता हैं इसे श्यामा जी भी कहते हैं तो स्वयं परमात्मा हम आत्माओ को अपने हृदये याने श्यामा जी के दुआरा अनंत आनंद में डुबोये रख्ते हैं क्योंकि परमात्मा ने अपने हृदये को हमारे आत्म हृदये में जोड़ रखा हैं उनके और हमारे बीच की यही कड़ी श्यामा जी हैं जो की स्वयम परमात्मा का हृदये स्वरुप है उन्हें ही ईशक या आनंद की सुराही कहा गया हैं जिसमे परमात्मा के आनंद रूपी सराब लगातार भरती रहती हैं जिसका आनंद ब्रह्मात्माएँ निरंतर लेती रहती हैं यह श्यामा जी परमात्मा और हम आत्माओ का बड़ा शुक्ष्म संबंध हैं जिसे सांसारिक दृष्टि से नही समझा जा सकता और न ही सब्दो के अर्थ के दुआरा इसका अर्थ निकाला जा सकता हैं जैसे शराब को पिने वाला ही बता सकता हैं की इसका आनंद केसा हैं उसी प्रकार इस सम्बन्ध को वही जान पता हैं जो इस सुराही से शराब पी रहा हो उसे पता हैं की इस सुराही और सुराही में जहां से शराब आ रही हैं उस से हमारा क्या संबंध हैं इसे याने इस संबंध को ही इल्म कहा गया हैं इसका भी अपना ही नशा हैं यह इल्म रूपी शराब भी उसी सुराही से आती हैं और इन सबका आनंद हमारी प्रात्म और आत्म दोनों को मिल रहा हैं..यह भी बहोत गहन विषय है जिसको थोड़े मे ही
अनन्त को डालने का दुस्साहस किया गया है..पर कया करूं करवाने वाला भी वही है ...
..................." सुराही वाला "
प्रणाम जी
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