अब निरखो नीके कर, ए जो देखन आइयां तुम ।
माग्य खेल हिरसका, सो देखलावें खसम ।।
(कलश हि. १३/१)
यह खेल इतना विचित्र है कि खेलने वाले और देखनेवाले दोनों ही इसमें रचे-पचे हुए सब कुछ भूल जाते हैं । यहाँके लोग किसी अपरिचित व्यक्तिके साथ सम्बन्ध बनाकर खुश होते हैं और सदा सर्वदासे परिचित परमातमा के साथके अपने शाश्वत सम्बन्धको भूल जाते हैं । यहाँ पर एक और विवाहके लिए श्रृंगार किए हुए बारातीलोग नाच रहे होते हैं तो दूसरी और किसी मृतककी अरथी उठाकर चलने वाले लोग रोते हुए जा रहे होते हैं । कभी ऐसे दोनों प्रकारके लोग आमने सामने हो जाते हैं । कहीं किसीका जन्म होकर लोग खुशियां मना रहे होते हैं तो वहीं पर दूसरी ओर किसीके मरण होनेसे रोते हुए दिखाई देते हैं,
यहँ पर कोई कृपण हैं तो कोई दाता कहलाते हैं, कोई ज्ञानी हैं तो कोई अज्ञानी हैं, कोई राज है तो कोई रंक है । इस प्रकार इस जगतमें अनेक विषमतायें हैं ।
परमात्मा ने हमें समझाया कि हे ब्रह्मात्माओ ! तुम यह विचित्र खेल देखने मात्रके लिए आयी हो किन्तु यहाँ आकर मायाके जीवोंकी भाँति तुम भी मायामें ही हिलमिल गई । इनको तो यह नश्वर खेल नश्वर नहीं लगता है क्योंकि जलतरंगवत् ये सभी स्वयं भी मोह मायाकी ही सृष्टि है । वास्तवमें यह झूठी माया तुम सत्य आत्माओंको प्रभावित कर रहीं है । तुम स्वयं सत्य होते हुए भी स्वयंको न पहचान कर झूठी मायामें भूलने लगी हो । यह तो नश्वर होनेके कारण एक दिन मिटेगी ही किन्तु तुम्हें झूठा दाग लगा कर मिटेगी । इसलिए तुम जागृत हो जाओ |
प्रणाम जी
माग्य खेल हिरसका, सो देखलावें खसम ।।
(कलश हि. १३/१)
यह खेल इतना विचित्र है कि खेलने वाले और देखनेवाले दोनों ही इसमें रचे-पचे हुए सब कुछ भूल जाते हैं । यहाँके लोग किसी अपरिचित व्यक्तिके साथ सम्बन्ध बनाकर खुश होते हैं और सदा सर्वदासे परिचित परमातमा के साथके अपने शाश्वत सम्बन्धको भूल जाते हैं । यहाँ पर एक और विवाहके लिए श्रृंगार किए हुए बारातीलोग नाच रहे होते हैं तो दूसरी और किसी मृतककी अरथी उठाकर चलने वाले लोग रोते हुए जा रहे होते हैं । कभी ऐसे दोनों प्रकारके लोग आमने सामने हो जाते हैं । कहीं किसीका जन्म होकर लोग खुशियां मना रहे होते हैं तो वहीं पर दूसरी ओर किसीके मरण होनेसे रोते हुए दिखाई देते हैं,
यहँ पर कोई कृपण हैं तो कोई दाता कहलाते हैं, कोई ज्ञानी हैं तो कोई अज्ञानी हैं, कोई राज है तो कोई रंक है । इस प्रकार इस जगतमें अनेक विषमतायें हैं ।
परमात्मा ने हमें समझाया कि हे ब्रह्मात्माओ ! तुम यह विचित्र खेल देखने मात्रके लिए आयी हो किन्तु यहाँ आकर मायाके जीवोंकी भाँति तुम भी मायामें ही हिलमिल गई । इनको तो यह नश्वर खेल नश्वर नहीं लगता है क्योंकि जलतरंगवत् ये सभी स्वयं भी मोह मायाकी ही सृष्टि है । वास्तवमें यह झूठी माया तुम सत्य आत्माओंको प्रभावित कर रहीं है । तुम स्वयं सत्य होते हुए भी स्वयंको न पहचान कर झूठी मायामें भूलने लगी हो । यह तो नश्वर होनेके कारण एक दिन मिटेगी ही किन्तु तुम्हें झूठा दाग लगा कर मिटेगी । इसलिए तुम जागृत हो जाओ |
प्रणाम जी
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