Friday, October 30, 2015

बुलेषाह

बुल्लाह  पढ़  पढ़ अलम  फाज़ल  होया ,
कदे  अपने  आप नु  पढ़या ही नई..
पज पज वरद दा  ए  मंदिर मसेति ,
कदे मन्न  अपने विच  वरदएया ही नई...
किंवए रोज़ शैतान णाल लारदाए,
कदे नफ़्ज़  अपने नाल  लरएया ही नई...
बुलेषाह आसमानीया उड़दी या फरहंए,
जेहरा घर  बैठा  ओहनु फडेया ही नई....

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