पद गाए मन हरषियां, साषी कह्यां अनंद ।
सो तत नांव न जाणियां, गल में पड़िया फंद ॥
भावार्थ - मन हर्ष में डूब जाता है भजन गाते हुए, और कथा सुन्ने में भी आनन्द आता है । लेकिन सारतत्व को नहीं समझा, और हरिनाम का मर्म न समझा, तो गले में फन्दा ही पड़नेवाला है | अर्थात बृह्म को जाने बिना कुछ भी करलो सब व्यर्थ है..
वेद में कहा है- उस धीर, अजर, अमर, नित्य तरुण परब्रह्म को ही जानकर विद्वान पुरुष मृत्यु से नहीं डरता है (अथर्ववेद १०/८/४४ )
प्रणाम जी
सो तत नांव न जाणियां, गल में पड़िया फंद ॥
भावार्थ - मन हर्ष में डूब जाता है भजन गाते हुए, और कथा सुन्ने में भी आनन्द आता है । लेकिन सारतत्व को नहीं समझा, और हरिनाम का मर्म न समझा, तो गले में फन्दा ही पड़नेवाला है | अर्थात बृह्म को जाने बिना कुछ भी करलो सब व्यर्थ है..
वेद में कहा है- उस धीर, अजर, अमर, नित्य तरुण परब्रह्म को ही जानकर विद्वान पुरुष मृत्यु से नहीं डरता है (अथर्ववेद १०/८/४४ )
प्रणाम जी
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