सुप्रभात जी
यह तो पूर्ण रूप से सत्य है कि आपने यह खेल हमारी इच्छा को पूर्ण करने के लिये किया होगा, लेकिन यह झूठा जगत् निराशाओं से भरा हुआ है। दिल में वास्तविकता का बोध हो जाने पर भी यह कितने आश्चर्य कि बात है कि यह झूठा शरीर सांसे ले रहा है ? इसे तो इस संसार में रहना ही नही चाहिय..
इस संसार की प्रत्येक वस्तु नश्वर है। यौवन, पद और धन भी स्थिर रूप से नहीं रहते। वियोग, रोग, भूख-प्यास, जन्म और मरण का भयानक कष्ट जीवन में निराशा ही पैदा करता है। इस संसार की यथार्थता का बोध होने पर विवेकवान् लोग इसके मोह-जाल में नहीं फंसते और परमात्मा अक्षरातीत के प्रेम में ही अपनी उम्र पूरी कर लेते हैं। उनके बिना इस संसार में रहना उन्हें किसी भी रूप में स्वीकार्य नहीं होता है।
प्रणाम जी
यह तो पूर्ण रूप से सत्य है कि आपने यह खेल हमारी इच्छा को पूर्ण करने के लिये किया होगा, लेकिन यह झूठा जगत् निराशाओं से भरा हुआ है। दिल में वास्तविकता का बोध हो जाने पर भी यह कितने आश्चर्य कि बात है कि यह झूठा शरीर सांसे ले रहा है ? इसे तो इस संसार में रहना ही नही चाहिय..
इस संसार की प्रत्येक वस्तु नश्वर है। यौवन, पद और धन भी स्थिर रूप से नहीं रहते। वियोग, रोग, भूख-प्यास, जन्म और मरण का भयानक कष्ट जीवन में निराशा ही पैदा करता है। इस संसार की यथार्थता का बोध होने पर विवेकवान् लोग इसके मोह-जाल में नहीं फंसते और परमात्मा अक्षरातीत के प्रेम में ही अपनी उम्र पूरी कर लेते हैं। उनके बिना इस संसार में रहना उन्हें किसी भी रूप में स्वीकार्य नहीं होता है।
प्रणाम जी
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