Friday, October 2, 2015

आनंद से आनंद को आनंद ( अरसपरस )

आनंद से आनंद को आनंद ( अरसपरस )

प्यारे कदम राखों छाती मिने, और राखों नैनों पर।
सिर ऊपर लिए फिरों, बैठो दिलको अरस कर।।

हे प्यारे मुझे इस बात से कोई संशय नही की आप मेरे (आत्मा के )हृदये में रहते हो और नित नए अहसास कराते रहते हो आपकी इन आनंद की लीलाओ को मैं प्रत्येक्ष अनुभव करति हूँ इस कारण मेरे आत्म हृदये में भी कुछ लिलावों की इछा उतपन्न हो रही है ...
की आप मेरे हृदये में अपने कदम रखो क्योंकि आप स्वयं आनंद हो आपके हर अंग आनंद से बने है अर्थात आपका हर अंग आनंद ही है तो जब आप अपने आनंद रूपी चरणो से मेरे हृदये में विचरण करोगे तो मेरे आनंद रूपी हृदये में आपके आनंद रूपी चरणों के आनंद चिन्ह स्थायी रूप से अंकित हो जॉएंगे जिनसे मुझे अखंड और निरंतर आनंद मिलता रहेगा आपके चरण चिन्हो का जो मेरे हृदये में स्थायी आनंद अंकित होगा मैं उसे निरंतर प्राप्त  करती रहूंगी..
"और राखों नैनों पर।
सिर ऊपर लिए फिरों, बैठो दिलको अरस कर"
और में चाहती हूँ की आप मेरे नैनो में आकर विराजमान हो जाओ जिस से मेरे नैनो में अखंड आनंद निरंतर  दृश्येमान रहे क्योंकि जब आप  मेरे नैनो में स्थायी रूप से आ जाओगे तो मुझे हर जगह आनंद के अलावा कुछ भी दिखाई नही देगा इस कारण हर पल मुझे आनंद की प्राप्ति होती रहेगी , और मैं आपको सिरोधार्ये करूँ जिस से आप आवरण रूप से मेरे ऊपर हर पल विराजमान रहें हर पल मैं आपके आपसे आपमें ही विचरण करती रहूँ , जब इस प्रकार आपको में अपने अनुभव में ले लुंगी तो आप मेरे हृदये में इस तरह से अनुभव करवाएंगे जैसे आपका हर आनंद मुझे प्राप्त होने लगा और आपका अंग याने आनंद का अंग होने के कारण मेरा आनंद आपमें समाने लगेगा इस कारण मुझमे और आपमें कोई भेद नही रह जायेगा..मुझे यहाँ रहते हुए भी आपसे एकदिली का अनुभव होने लगेगा जिस से हमारा हृदये अरसपरस हो जायेगा इनमे कोई भेद नही रह जायेगा...

प्रणाम जी

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