हद पार बेहद है , बेहद पार अछर ।
अछर पार वतन है , जागिए इन घर ।। (प्र. हि. ३१/१६५)
•यह हद का ब्रह्माण्ड जिसमे 14 लोक व निराकार तक का विस्तार आता है यह सब लय होने वाला है इसलिय इसे हद काहा है ..
श्रीमद् भागवतम के द्वतीय स्कन्ध के पाँचवे अध्याय में इस ब्रह्माण्ड के अन्तर्गत 14 भुवनों या लोकों का वर्णन किया गया है |
उपरी या ऊर्ध्व लोक: 1.भूर्लोक (प्रथ्वी), 2.भुवर्लोक (राक्षस तथा भूत पिशाच), 3.स्वर्गलोक, 4. महर्लोक (भृगु महिर्षि), 5. जनः लोक (सप्त ऋषि), 6. तपः लोक तथा 7. सत्यलोक (ब्रह्मा ,विष्णू,महेश) |
श्रील विश्वनाथ चक्रवर्ती ठाकुर के अनुसार ध्रुवलोक सूर्य से 38 लाख योजन ऊपर स्थित है | ध्रुवलोक से एक करोड़ योजन ऊपर महर्लोक और इससे 2 करोड़ योजन ऊपर जनस लोक, फिर इससे ऊपर 8 करोड़ योजन ऊपर तपोलोक और इससे भी 12 करोड़ योजन ऊपर सत्यलोक स्थित है | इस प्रकार सूर्य से सत्यलोक की दूरी 23,38,00,000 योजन या 1,87,04,00,000 मील है | सूर्य से प्रथ्वी की दूरी 1 लाख योजन है | प्रथ्वी से 70,000 योजन नीचे अधोलोक या निम्न लोक शुरू होते हैं (SB.5.23.9 तात्पर्य) |
सात अधोलोक: यहाँ सूर्य का प्रकाश नही जाता, अतः काल दिन या रात में विभाजित नही है पर यह भी महाप्रलय में लीन होने वाला है | (SB.5.24.11) |
1.अतल - मय दानव का पुत्र बल नाम का असुर जिसने 96 प्रकार की माया रच रखी है | कुछ तथाकथित योगी तथा स्वामी आज भी लोगों को ठगने के लिए इस माया का प्रयोग करते हैं (SB.5.24.16) |
2.वितल - स्वर्ण खानों के स्वामी भगवान् शिव अपने गणों, भूतों, तथा ऐसे ही अन्य जीवों के साथ रहते है और माता भवानी के साथ विहार करते हैं (SB.5.24.17) |
3.सुतल - महाराज विरोचन के पुत्र महाराज बलि आज भी श्री भगवान् की आराधना करते हुए निवास करते हैं तथा भगवान् महाराज बलि के द्वार पर गदा धारण किये खड़े रहते हैं (SB.5.24.18) |
4.तलातल - यह मय दानव द्वारा शासित है जो समस्त मायावियों के स्वामी के रूप में विख्यात है (SB.5.24.28) |
5.महातल - यह सदैव क्रुद्ध रहने वाले अनेक फनों वाले कद्रू की सर्प-संतानों का आवास है जिनमे कुहक, तक्षक, कालिय तथा सुषेण प्रमुख हैं (SB.5.24.29) | ,
6.रसातल - यहाँ दिति तथा दनु के आसुरी पुत्रों का निवास है, ये पणि, निवात-कवच, कालेय तथा हिरण्य-पुरवासी कहलाते हैं | ये देवताओं के शत्रु हैं और सर्पों के भांति बिलों में रहते हैं (SB.5.24.30) |
7.पाताल – यहाँ अनेक आसुरी सर्प तथा नागलोक के स्वामी रहते हैं, जिनमे वासुकी प्रमुख है | जिनमे से कुछ के पांच, सात, दस, सौ और अन्यों के हजार फण होते हैं | इन फणों में बहुमूल्य मणियाँ सुशोभित हैं जिनसे अत्यन्त तेज प्रकाश निकलता है (SB.5.24.31) |
पाताल लोक के मूल में भगवान् अनन्त अथवा संकर्षण निवास करते हैं, जो सदैव दिव्य पद पर आसीन हैं तथा इस सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड को धारण किये रहते हैं | भगवान् अनन्त सभी बद्धजीवों के अहं तथा तमोगुण के प्रमुख देवता हैं तथा शिवजी को इस भौतिक जगत के संहार हेतु शक्ति प्रदान करते हैं (SB.5.25) |
ब्रह्मांड की माप पचास करोड़ योजन है तथा इसकी लम्बाई व चौड़ाई एकसमान है (आदि लीला 5.97.98) | प्रत्येक लोक का अपना एक विशेष वायुमंडल होता है और यदि कोई भौतिक ब्रह्माण्ड के अन्तर्गत किसी विशेष लोक की यात्रा करना चाहता है तो उस व्यक्ति को उस लोक- विशेष के अनुसार अपने शरीर को अनुकूल बनाना होता है | भौतिक ब्रह्माण्ड के इन उच्चतर लोकों में जाने के लिए मनुष्य को मन तथा बुद्धि अर्थात सूक्ष्म शरीर को त्यागना नही पड़ता, उसे केवल प्रथ्वी, जल, अग्नि इत्यादि से बने स्थूल शरीर को ही त्यागना होता है ||
गीता (8.16) में भगवान् कृष्ण कहते हैं: इस जगत में सर्वोच्च लोक से लेकर निम्नतम सारे लोक दुखों के घर हैं जहाँ जन्म तथा मृत्यु का चक्कर लगा रहता है, किन्तु जो मेरे धाम को प्राप्त कर लेता है वह फिर कभी जन्म नहीं लेता |
•इस हद के ब्रह्माण्ड से परे बेहद का मण्डल है । इसके अन्तर्गत अक्षर ब्रह्म के चारों पाद सत्स्वरूप , केवल , सबलिक और अव्याकृत हैं ।
वेद के कथनानुसार- यह सम्पूर्ण जगत ब्रह्म के चौथे पाद (अव्याकृत) द्वारा बना है । इसके तीनों पाद चेतन , प्रकाशमय और अखण्ड हैं । परब्रह्म का स्वरूप इन तीनो पादों से भी परे उस स्थान पर है , जिसे परमधाम ( दिव्य ब्रह्मपुर ) कहते हैं
•मूल तत्व सच्चिदानन्द पूर्ण ब्रह्म अक्षरातीत हैं , जो अक्षर से भी परे हैं ।उनके हारे में कहा है की..
परब्रह्म सर्वव्यापक अवश्य है किन्तु अपने निजधाम में , जहाँ के कण-कण में अनन्त सूर्यों का प्रकाश है , जहाँ अनन्त आनन्द है (ऋग्वेद ९/११३/७) ।
गीता में भी कहा गया है कि उस ब्रह्मधाम में न तो सूर्य प्रकाशित होता है न चन्द्रमा और न अग्नि ही । जहाँ जाने पर पुनः लौटना नहीं पड़ता वह मेरा परमधाम है ।
प्रकृति के अन्धकार से सर्वथा परे सूर्य के समान प्रकाशमान स्वरूप वाले परमात्मा को मै जानता हूँ , जिसको जाने बिना मृत्यु से छुटकारा पाने का अन्य कोई भी उपाय नहीं है (यजुर्वेद ३१/१८) ।
प्रणाम जी