सुप्रभात जी
पढ़ पढ़ के इलम की बाते तू ज्ञानी तो हो गया पर कभी अपने आप को जानने का प्रयास नही कीया ,
तू मंदिर मस्जित भागता फिरता हैं कभी अपने हृदये में झांक के नही देखता ,
तू सोचता हैं की शैतान बहार हैं और रोज इसी उलझन में रहता हैं पर कभी अपने अंदर के अंधकार को दूर नही करता जहाँ से शैतान उत्पन्न होता हैं ,
तू समझता हैं की खुदा आसमान में रहता हैं पर वो तो तेरे हृदये धाम में हैं याने तेरे घर में हैं जीसे तूने कभी खोजने का प्रयास नही कीया..
परमधाम की आत्माओं को चाहिए कि वे ब्रह्मवाणी के ज्ञान तथा परमात्मा के प्रेम से अपनी आत्मिक दृष्टि को खोलें। यदि वे ऐसा करके इस जगत की लीला को देखती हैं तो उन्हें यह विदित हो जायेगा कि यह सम्पूर्ण जीव सृष्टि उस खेल के कबूतर की तरह हैं, जिसका बाजीगर (अक्षर ब्रह्म) दूर बैठे हुए इस खेल को खेला रहा है।
इस अवस्था में ब्रह्मसृष्टि जीवों को अपना आदर्श नहीं मानेगी और उनके कर्मकाण्डों की नकल नहीं उतारेगी।तारतम ज्ञान प्राप्त हो जाने के पश्चात् तो ब्रह्मसृष्टियां अपने धाम हृदय में परमात्मा के अतिरिक्त अन्य किसी को भी नहीं बसाती।
प्रणाम जी
पढ़ पढ़ के इलम की बाते तू ज्ञानी तो हो गया पर कभी अपने आप को जानने का प्रयास नही कीया ,
तू मंदिर मस्जित भागता फिरता हैं कभी अपने हृदये में झांक के नही देखता ,
तू सोचता हैं की शैतान बहार हैं और रोज इसी उलझन में रहता हैं पर कभी अपने अंदर के अंधकार को दूर नही करता जहाँ से शैतान उत्पन्न होता हैं ,
तू समझता हैं की खुदा आसमान में रहता हैं पर वो तो तेरे हृदये धाम में हैं याने तेरे घर में हैं जीसे तूने कभी खोजने का प्रयास नही कीया..
परमधाम की आत्माओं को चाहिए कि वे ब्रह्मवाणी के ज्ञान तथा परमात्मा के प्रेम से अपनी आत्मिक दृष्टि को खोलें। यदि वे ऐसा करके इस जगत की लीला को देखती हैं तो उन्हें यह विदित हो जायेगा कि यह सम्पूर्ण जीव सृष्टि उस खेल के कबूतर की तरह हैं, जिसका बाजीगर (अक्षर ब्रह्म) दूर बैठे हुए इस खेल को खेला रहा है।
इस अवस्था में ब्रह्मसृष्टि जीवों को अपना आदर्श नहीं मानेगी और उनके कर्मकाण्डों की नकल नहीं उतारेगी।तारतम ज्ञान प्राप्त हो जाने के पश्चात् तो ब्रह्मसृष्टियां अपने धाम हृदय में परमात्मा के अतिरिक्त अन्य किसी को भी नहीं बसाती।
प्रणाम जी
No comments:
Post a Comment