हम सिर हुकम आइया, अर्स हुआ दिल हम।
एही काम हक इलम का, तो सुख काहे न लेवें खसम।।
हम पर परमात्मा का हुक्म है अर्थात् परमात्मा पल-पल हमारे साथ हैं। इस प्रकार हमारा दिल परमात्मा का धाम बन गया है। तारतम ग्यान का कार्य ही है हमारे हृदय को धाम बनाना। ऐसी स्थिति में हमें अपने धाम हृदय में विराजमान परमात्मा से निरंतर सुख मिलता है..आत्माऐं परमात्मा के ही दिल की स्वरूपा हैं। उनकी प्रत्येक लीला परमात्मा के हृदय की इच्छा (हुक्म) से जुड़ी होती है। इस प्रकार अंग अंगी होने से प्रत्येक लीला में आत्माओं के साथ परमात्मा का जुड़ा रहना अनिवार्य है। इसे ही अपने सिर पर परमात्मा का हुक्म होने की बात कही गयी है।
आत्माओं के दिल को परमधाम कहा गया है। हम ही धाम धनी के हुक्म के स्वरूप हैं। जब हमारे पास अखण्ड धाम का संशय रहित तारतम ज्ञान है तो हमारे अन्दर प्रियतम का प्रेम क्यों नहीं आयेगा अर्थात् अवश्य आयेगा।सर्वोच्च ब्राह्मी अवस्था (मारिफत) में आत्मा और परमात्मा में किसी भी प्रकार का भेद नहीं रह जाता। उसी अवस्था में ही यह कहा जा सकता है कि हम परमात्मा के हुक्म के स्वरूप हैं।
प्रणाम जी
एही काम हक इलम का, तो सुख काहे न लेवें खसम।।
हम पर परमात्मा का हुक्म है अर्थात् परमात्मा पल-पल हमारे साथ हैं। इस प्रकार हमारा दिल परमात्मा का धाम बन गया है। तारतम ग्यान का कार्य ही है हमारे हृदय को धाम बनाना। ऐसी स्थिति में हमें अपने धाम हृदय में विराजमान परमात्मा से निरंतर सुख मिलता है..आत्माऐं परमात्मा के ही दिल की स्वरूपा हैं। उनकी प्रत्येक लीला परमात्मा के हृदय की इच्छा (हुक्म) से जुड़ी होती है। इस प्रकार अंग अंगी होने से प्रत्येक लीला में आत्माओं के साथ परमात्मा का जुड़ा रहना अनिवार्य है। इसे ही अपने सिर पर परमात्मा का हुक्म होने की बात कही गयी है।
आत्माओं के दिल को परमधाम कहा गया है। हम ही धाम धनी के हुक्म के स्वरूप हैं। जब हमारे पास अखण्ड धाम का संशय रहित तारतम ज्ञान है तो हमारे अन्दर प्रियतम का प्रेम क्यों नहीं आयेगा अर्थात् अवश्य आयेगा।सर्वोच्च ब्राह्मी अवस्था (मारिफत) में आत्मा और परमात्मा में किसी भी प्रकार का भेद नहीं रह जाता। उसी अवस्था में ही यह कहा जा सकता है कि हम परमात्मा के हुक्म के स्वरूप हैं।
प्रणाम जी
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