Tuesday, January 19, 2016

चार प्रकार का निश्चय

सुप्रभात जी

श्रीयोगवशिष्ठ महारामायण ( चार प्रकार का निश्चय)

हे रामजी! जीव को चार प्रकार का निश्चय होता है।

 चरणों से लेकर मस्तक पर्यन्त शरीर में आत्मबुद्धि होना और माता पिता से उत्पन्न हुआ जानना, यह निश्चय बन्धनरूप है और असम्यक् दर्शन (भ्रान्ति) से होता है । यह प्रथम निश्चय है ।

द्वितीय निश्चय यह है कि मैं सब भावों और पदार्थों से अतीत हूँ, बाल के अग्र से भी सूक्ष्म हूँ और साक्षीभूत सूक्ष्म से अतिसूक्ष्म हूँ । यह निश्चय शान्तिरूप मोक्ष को उपजाता है ।

 जो कुछ जगत्‌जाल है वह सब पदार्थों में मैं ही हूँ और आत्मारूप मैं अविनाशी हूँ । यह तीसरा निश्चय है, यह भी मोक्षदायक है |

चौथा निश्चय यह है कि मैं (शरीर)असत्य हूँ और जगत् भी असत्य है, इनसे अलग आत्मा आकाश की तरह सन्मात्र है । इसमें जीव आत्मभाव में आजाता है और परमात्मा से संयोग करता है..यह अखंड आमंद दायक है ।

 हे रामजी! ये चार प्रकार के निश्चय जो मैंने तुमसे कहे हैं उनमें से प्रथम निश्चय बन्धन का कारण है और बाकी तीनों मोक्ष के कारण हैं और वे शुद्ध भावना से उपजते हैं । जो प्रथम निश्चयवान् है वह तृष्णारूप सुगन्ध से संसार में भ्रमता है और बाकी तीनों भावना शुद्ध जीवन्मुक्त पुरुष की है । जिसको यह निश्चय है कि सर्वजगत् मैं आत्मस्वरूप हूँ उसको तृष्णा और राग द्वेष फिर नहीं दुःख देते ।

प्रणाम जी

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