सुप्रभात जी
अरे मन ! यह संसार दो प्रकार का है- एक स्थूल, दूसरा सूक्ष्म | शब्दादिक विषय सम्बन्धी जितने भौतिक पदार्थ हैं, वही स्थूल संसार है एवं इन पदार्थों की हृदय में जो बलवती कामना है वही सूक्ष्म संसार है | स्थूल संसार के छोड़ देने से सूक्ष्म संसार नहीं समाप्त होता अर्थात् सांसारिक पदार्थों के परित्याग मात्र से इच्छायें नहीं समाप्त होतीं | किन्तु यदि यही मन परमात्मा में लगा दिया जाय तो सूक्ष्म संसार अर्थात् इच्छाओं और स्थूल संसार का भान ही नहीं रहता | इसलिय तू निरन्तर प्रमातमा का ध्यान कर समस्त कामनाओं का परित्याग अपने आप हो जायगा | नही तो तू मुर्खों
की भांती जीवन व्यर्थ कर अवसर गवां देगा |
प्रणाम जी
अरे मन ! यह संसार दो प्रकार का है- एक स्थूल, दूसरा सूक्ष्म | शब्दादिक विषय सम्बन्धी जितने भौतिक पदार्थ हैं, वही स्थूल संसार है एवं इन पदार्थों की हृदय में जो बलवती कामना है वही सूक्ष्म संसार है | स्थूल संसार के छोड़ देने से सूक्ष्म संसार नहीं समाप्त होता अर्थात् सांसारिक पदार्थों के परित्याग मात्र से इच्छायें नहीं समाप्त होतीं | किन्तु यदि यही मन परमात्मा में लगा दिया जाय तो सूक्ष्म संसार अर्थात् इच्छाओं और स्थूल संसार का भान ही नहीं रहता | इसलिय तू निरन्तर प्रमातमा का ध्यान कर समस्त कामनाओं का परित्याग अपने आप हो जायगा | नही तो तू मुर्खों
की भांती जीवन व्यर्थ कर अवसर गवां देगा |
प्रणाम जी
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