Friday, January 22, 2016

अपने गले में सौ मालायें डाल लो

सुप्रभात जी

अपने गले में एक दो नहीं , बल्कि सौ मालायें डाल लो , केवल एक जगह ही नहीं , बल्कि १२ अंगों में १० बार तिलक लगा लो , चाहे तुम इतने सिद्ध बन जाओ कि योग द्वारा भविष्य की सारी बातें जानने लगो , दूसरों के मन की बात भी जान जाओ , चौदह लोकों का सारा दृश्य भी देखने लगो तथा मरे व्यक्तियों को जीवित करने लगो , लेकिन जब तक परमात्मा से प्रेम नहीं होता , तब तक यह मन माया में फँसना नहीं छोड़ेगा ...
पूर्ण ब्रह्म परमात्मा का साक्षात्कार करने के लिए हमें शरीर, मन, बुद्धि आदि के धरातल पर होने वाली उपासना पद्धतियों को छोड़कर तारतम ग्यान के आधार पर उस मार्ग का अवलम्बन करना पड़ेगा, जिसके विषय में गीता में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि 'पुरुषः स परः पार्थ भक्त्या लभ्यस्तु अनन्यया' अर्थात् वह परब्रह्म अनन्य प्रेम लक्षणा भक्ति द्वारा प्राप्त होता है, जो नवधा आदि सभी प्रकार की उपासना पद्धतियों से भिन्न है। अखण्ड मुक्ति की प्राप्ति भी इसी अनन्य प्रेम द्वारा होती है ।
अनन्य प्रेम लक्षणा भक्ति का रसमयी मार्ग का अवतरण गोपियों ने ही किया , जिससे उनके लिए यह अथाह भवसागर गाय के बछड़े के खुर से बने हुए गड्ढे की तरह छोटा हो गया । तब उन्होंने इसे बड़ी सरलता से पार कर लिया ।

प्रणाम जी

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