इन बिध खेल देखाइया, ना तो रूहें झूठ देखें क्यों कर।
अपने तन हकें जान के, करी हाँसी रूहों ऊपर।।
इस प्रकार परमात्मा ने अपनी आत्माओं को माया का यह दूैत का खेल दिखाया है, अन्यथा आत्मांये इस दूैत के जगत को नहीं देख सकतीं। परमात्मा ने अपनी आत्माओं को अपना मानकर ही उनके लिय यह बिलकुल भिन्न व नये खेल की रचना की है, अर्थात् इस खेल में इस युग में जो नविनता ,वैग्यानिक उन्नती व सुलभता है वह पहले कभी कीसी युग में नही थी जो का यह खेल दिखाया है।परमात्मा ने दुैत का यह खेल अपनी आत्मांओ को सुख देने के लिये ही किया है, लेकिन इसकी वास्तविकता का ज्ञान अभी किसी को भी नहीं है। जब हम परमधाम में जागृत होंगे, तब माया का यह खेल हमें बहुत अधिक सुख देगा।
जिस प्रकार शीतल चन्द्रमा की किरणें दाहकारक नहीं हो सकती, उसी प्रकार अनन्त आनन्द के स्वरूप परमात्मा की कोई भी लीला दुःखदायी नहीं हो सकती। परमात्मा ने हमें दूैत का खेल अवश्य दिखाया है, किन्तु ब्रह्मवाणी द्वारा जो मारिफत की पहचान दी है, वह परमधाम में भी नहीं थी। अब परमधाम में या इस खेल में जागृत होने पर ही उस सुख का अहसास होगा।
प्रणाम जी
अपने तन हकें जान के, करी हाँसी रूहों ऊपर।।
इस प्रकार परमात्मा ने अपनी आत्माओं को माया का यह दूैत का खेल दिखाया है, अन्यथा आत्मांये इस दूैत के जगत को नहीं देख सकतीं। परमात्मा ने अपनी आत्माओं को अपना मानकर ही उनके लिय यह बिलकुल भिन्न व नये खेल की रचना की है, अर्थात् इस खेल में इस युग में जो नविनता ,वैग्यानिक उन्नती व सुलभता है वह पहले कभी कीसी युग में नही थी जो का यह खेल दिखाया है।परमात्मा ने दुैत का यह खेल अपनी आत्मांओ को सुख देने के लिये ही किया है, लेकिन इसकी वास्तविकता का ज्ञान अभी किसी को भी नहीं है। जब हम परमधाम में जागृत होंगे, तब माया का यह खेल हमें बहुत अधिक सुख देगा।
जिस प्रकार शीतल चन्द्रमा की किरणें दाहकारक नहीं हो सकती, उसी प्रकार अनन्त आनन्द के स्वरूप परमात्मा की कोई भी लीला दुःखदायी नहीं हो सकती। परमात्मा ने हमें दूैत का खेल अवश्य दिखाया है, किन्तु ब्रह्मवाणी द्वारा जो मारिफत की पहचान दी है, वह परमधाम में भी नहीं थी। अब परमधाम में या इस खेल में जागृत होने पर ही उस सुख का अहसास होगा।
प्रणाम जी
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