Wednesday, January 20, 2016

राम नाम का सार

सुप्रभात जी
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हमारे अंतः करण में जड पूजा के कारण बेहद के पार का ग्यान तारतम का प्रकाश नही हो पाता जिस कारण हम व्यापक परमात्मा को भी संकिर्णता में बांध कर देखते है ,इसी कारण हम केवल नामों मे अटक कर परमत्तव परमात्मा से दूर रह जाते है व अग्यानवश आपसी कलह कर अपने अपने नाम को सर्वेच्च प्रमाणित करने में लगे रहते है ..इसी श्रंखला में एक शब्द आता है राम ,हम अपनी अन्यता का अर्थ न समझपाने के कारण अन्नयता का हवाला देकर परमात्मा को केवल नाम समझकर उस पूर्ण परमात्मा के कई नामों से अलगाव कर बैठते हैं ..आइये जाने राम का कया भाव है..

राम शब्द इतना व्यापक है कि जयादातर परमात्मा के लिए राम शब्द ही आता है,
 रमते इति राम: अर्थात परमात्मा में रमने का नाम ही राम है..
"र " का अर्थ है अग्नि, प्रकाश, तेज, प्रेम, गीत ।  रम (भ्वा आ रमते) राम (रम कर्त्री घन ण) सुहावना, आनन्दप्रद, हर्षदायक, प्रिय, सुन्दर, मनोहर ।
राम शब्द का भाव किसी शरिर मात्र से नी है , कबीर जी ने राम का बडा ही सूंदर विवरण किय है...
चार राम हैं जगत में,तीन राम व्यवहार ।
चौथ राम सो सार है, ताका करो विचार ॥

एक राम दसरथ घर डोलै, एक राम घट-घट में बोलै ।
एक राम का सकल पसारा, एक राम हैं सबसे न्यारा ॥

सकार राम दसरथ घर डोलें, निराकार घट-घट में बोलै ।
बिंदराम का सकल पसारा, अकः राम हैं सबसे न्यारा ॥

निर्गुण राम निरंजन राया, जिन वह सकल श्रृष्टि उपजाया ।
निगुण सगुन दोउ से न्यारा, कहैं कबीर सो राम हमारा ॥
वेद में परमधाम को भी अयोध्या के नाम से सम्बोधित किय है आगर नाम व शब्द मे हि उल्झे रहें तो परमत्तव से दूर रह जायेंगे..

आठ चक्रों और नवद्वारों से युक्त, अपने आनन्द स्वरूप वालों की, किसी से युद्ध के द्वारा विजय न की जाने वाली (अयोध्या) पुरी है । उसमें तेज स्वरूप कोश सुख स्वरूप है जो ज्योति से ढका हुआ है (अथर्ववेद १०/२/३१) ।
यहाँ आठ चक्रों का तात्पर्य शरीर के आठ चक्रों से अथवा प्रकृति के आठ आवरणों से नहीं है क्योंकि यह तो नाशवान हैं, जबकि इस ब्रह्मपुरी को अमृत स्वरूप कहा गया है । श्रीमुख वाणी में वर्णित परमधाम को घेरकर आए आठ सागरों को ही आठ चक्र कहकर सम्बोधित किया गया है । इसी प्रकार नवद्वारों को परमधाम की नव भूमियों के लिए वर्णित किया गया है । अयोध्या कहने का अभिप्राय है कि इस परमधाम में संसार का कोई भी जीव (नारायण सहित) ध्यानावस्था में कदापि प्रवेश नहीं कर सकता । सशरीर तो कोई भी प्राणी निराकार से आगे योगमाया में भी नहीं जा सकता ..

प्रणाम जी

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