इलम हक का सुनतही , इसक न आया जिन |
तिनको नसीहत जिन करो , वह मुतलक नहीं मोमिन ||
परमात्मा के ज्ञान को पाकर भी जिसके हृदय में परमात्मा के प्रती प्रेम उत्पन्न नही होता ऐसे व्येक्ति को
समझाने का कोई लाभ नही है क्यों की वो हृदये में परमात्मा का धाम नही बनापाने के कारण ब्रह्मात्मा नही है ..
अर्थात जो लोग केवल ज्ञान में ही उलझे रहते हैं वे अपनी बुध्ही चातुर्य से ज्ञान के माध्यम से दुनिया में केवल अहंकार की ही कमाई में लगे रहते है क्योंकि बिना परमात्माके प्रेम के ज्ञान प्राण हीन शव के समान है और शव का स्वाभाव है की थोड़े ही समय में उस में से दुर्गन्ध आने लगती है अर्थात प्रेम बिना ज्ञान विकार ही उत्पन करता है वह कभी भी मुक्ति नही अपितु बंधन का ही कारण बनता है और व्यक्ति मान बडाई में इतना मस्त हो जाता है की उसको किसी प्रकार की नसीहत देने पर उसके अहंकार पर चोट लगती है इसलिए ऐसे व्येक्ति को नसीहत देने का कोई लाभ नही है ...
प्रणाम जी
तिनको नसीहत जिन करो , वह मुतलक नहीं मोमिन ||
परमात्मा के ज्ञान को पाकर भी जिसके हृदय में परमात्मा के प्रती प्रेम उत्पन्न नही होता ऐसे व्येक्ति को
समझाने का कोई लाभ नही है क्यों की वो हृदये में परमात्मा का धाम नही बनापाने के कारण ब्रह्मात्मा नही है ..
अर्थात जो लोग केवल ज्ञान में ही उलझे रहते हैं वे अपनी बुध्ही चातुर्य से ज्ञान के माध्यम से दुनिया में केवल अहंकार की ही कमाई में लगे रहते है क्योंकि बिना परमात्माके प्रेम के ज्ञान प्राण हीन शव के समान है और शव का स्वाभाव है की थोड़े ही समय में उस में से दुर्गन्ध आने लगती है अर्थात प्रेम बिना ज्ञान विकार ही उत्पन करता है वह कभी भी मुक्ति नही अपितु बंधन का ही कारण बनता है और व्यक्ति मान बडाई में इतना मस्त हो जाता है की उसको किसी प्रकार की नसीहत देने पर उसके अहंकार पर चोट लगती है इसलिए ऐसे व्येक्ति को नसीहत देने का कोई लाभ नही है ...
प्रणाम जी
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