Tuesday, January 26, 2016

परब्रह्म को ही जान लेने पर....

सुप्रभात जी

हमने भोगों को नहीं भोगा , बल्कि भोगों ने ही हमें भोग डाला । हमने तप नहीं किया बल्कि त्रिविध तापों ने ही हमे तपा डाला । काल की अवधि नहीं बीती , बल्कि हमारी ही उम्र बीत गई । तृष्णा बूढ़ी नहीं हुई , बल्कि हम ही बूढ़े हो गए ।
( वैराग्य शतक ८ )
यदि सम्पूर्ण पृथ्वी को रत्नों से भरकर भी किसी को दे दिया जाए , तो भी उसे शाश्वत शान्ति तथा अमरत्व प्राप्त नहीं हो सकता । इस संसार में अपनी कामना के कारण ही सब कुछ प्रिय होता है । इसलिए एकमात्र परब्रह्म ही देखने योग्य , श्रवण ( ज्ञान ) करने योग्य एवं ध्यान करने योग्य है । उस परब्रह्म को ही जान लेने पर , सुन लेने पर या देख लेने पर सब कुछ ही जाना हुआ हो जाता है ।

प्रणाम जी

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