हो भाई मेरे वैष्णव कहिए वाको, निरमल जाकी आतम।
नीच करम के निकट न जावे, जाए पेहेचान भई पारब्रह्म।।
हे साधुजन संसार मे शुध्द या उच्च वर्ग का मुल्यान्कन शरीर की जाती से नही अपितू उसके अनतःकरण की स्थिती के आधार पर होता है ..इसलिये वैष्णव कहलाने का अधिकार केवल उसीको है जिसका अन्तःकरण शुध्द हो गया हो जिसकि आतम दृष्टि खुल चुकि हो ऐसा आत्मभावी ही वैष्णव कहलाने के लायक है..कयोंकी वह वे सब कर्म जिसे तुम नीच या ऊंच की दृष्टि से देखते हो वो दोनो को ही त्याग चुका है ..उसे पारबृह्म की पहचान हो चुकी है..पर वो बाहर जाहिर नही करता ..उसके जीव की स्थिती अन्य जीवो की तुलना में बहोत श्रेष्ट
हो चुकी होने के कारण उसे वैष्णव कहा जायगा व केवल वही सच्चा वैष्णव है ..अन्यथा ये शरीर तो मिटने वाले व गन्दगी से ही बने है जिनमे मल भरा हुवा है इनसे केसे कोइ वैष्णव हो सकता हैं..
प्रणाम जी
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