परमात्मा से मन की बात..
मेरी समझ में नहीं आ रहा है कि मैं क्या करूं ? कहां जाऊँ और अपने दिल की बातें किस प्रकार कहूं ? कयोंकी बहोत जोर से पुकारने पर भी यहां मेरी भाषा कोइ नही समझ पा रहा है ,मुझे लगा की मेरी एक आवाज पर मेरी वतन की सखी मुझे ढूंड़ लेगी और हम पिलके अपने वतन की मिठी मिठी बाते करेंगे पर मेरे वतन के लोग न जाने काहां छिपे हुए है.. याहां तो लोग न जाने कैसी कैसी भाषा (माया) में बाते करते है जो मुझे समझ नही आती , मेरे वतन में तो प्रेम व आनंद सेे सब एक दूसरे से बन्धे रहते है..पर याहा तो अलगाव वाद का खेल ज्वर की तरह चढ़ा हुआ है..हे धनी मुझे अपनो से मिलवा दो ताकी में उनसे मेरी भाषा में आपकी और वतन की बातें कर सकूं जिस से मेरे हृदय को करार मिले..
प्रणाम जी
मेरी समझ में नहीं आ रहा है कि मैं क्या करूं ? कहां जाऊँ और अपने दिल की बातें किस प्रकार कहूं ? कयोंकी बहोत जोर से पुकारने पर भी यहां मेरी भाषा कोइ नही समझ पा रहा है ,मुझे लगा की मेरी एक आवाज पर मेरी वतन की सखी मुझे ढूंड़ लेगी और हम पिलके अपने वतन की मिठी मिठी बाते करेंगे पर मेरे वतन के लोग न जाने काहां छिपे हुए है.. याहां तो लोग न जाने कैसी कैसी भाषा (माया) में बाते करते है जो मुझे समझ नही आती , मेरे वतन में तो प्रेम व आनंद सेे सब एक दूसरे से बन्धे रहते है..पर याहा तो अलगाव वाद का खेल ज्वर की तरह चढ़ा हुआ है..हे धनी मुझे अपनो से मिलवा दो ताकी में उनसे मेरी भाषा में आपकी और वतन की बातें कर सकूं जिस से मेरे हृदय को करार मिले..
प्रणाम जी
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