संसार का बीज मन है..
सुप्रभात जी
Satsangwithparveen.blogspot.com
बहुत कहने से क्या है थोडे से ही समझो की सब कर्मों ,इच्छाओं और सूक्ष्म संसार का बीज मन है, मन को छेदने से ही सब जगत् का छेदन होता है । जब मनरूपी बीज नष्ट होता है तब जगत्रूपी अंकुर भी नष्ट हो जाता है । सब जगत् मन का रूप है, इसके अभाव का उपाय करो । मलीन मन से अनेक जन्म के समूह उत्पन्न होते हैं और इसके जीतने से सब लोकों में जय होती है । सब जगत् मन से हुआ है, मन के रहित होने से देह का भी भास नही होता , जब मन से दृश्य का अभाव होता है तब मन भी मृतक हो जाता है, इसके सिवाय कोई उपाय नहीं ।
मनरूपी पिशाच का नाश और किसी उपाय से नहीं होता । अनेक कल्प बीत गये और बीत जायँगे तब भी मन का नाश न होगा । इससे जब तक जगत् दृश्यमान है तब तक इसका उपाय करे । जगत् का अत्यन्त अभाव चिन्तना और स्वरूप आत्मा का अभ्यास करना यही परम औषध है । इस उपाय से मनरूपी दृष्टा नष्ट होता है जब तक मन नष्ट नहीं होता तब तक मन के मोह से जन्म मरण होता है और जब परमात्मा की मेहर होती है तब मन बन्धन से मुक्त होता है सम्पूर्ण जगत्, मन के विचरण से दिखता है जैसै आकाश में शून्यता दिखते हैं तैसे ही संपूर्ण जगत् मन में दिखता है ।
जैसे पुष्प में सुगन्ध, तिलों में तेल, गुणी में गुण और धर्मी में धर्म रहते हैं तैसे ही यह सत् असत्,स्थूल सूक्ष्म, कारण, कार्यरूपी जगत- मन में रहता है । जैसे समुद्र में तरंग और मरुस्थल में मृगतृष्णा का जल दिखता है वैसे ही चित्त में जगत् दिखता है ।
जैसे सूर्य में किरणें, तेज में प्रकाश और अग्नि में उष्णता है तैसे ही मन में जगत् है । जैसे बरफ में शीतलता, आकाश में शून्यता और पवन में स्पन्दता है तैसे ही मन में जगत् । सम्पूर्ण जगत् मनरूप है, मन जगत्रूप है और परस्पर एकरूप हैं, दोनों में से एक नष्ट हो तब दोनों नष्ट हो जाते हैं । जब जगत् नष्ट हो तब मन भी नष्ट हो जाता है । जैसे वृक्ष के नष्ट होने से पत्र, टास, फूल, फल नष्ट हो जाते हैं और इनके नष्ट होने से वृक्ष नष्ट नहीं होता ...
इसलिय आत्मरूप होकर परमात्मा में निरंतर ध्यान से मन की आंखे मन्द होकर विवेक जाग्रीत होता है जिसके माध्यम से मन रूपी खरपतवार नष्ट होकर आत्मग्यान का बिज अंकुरित हो जाता है..
Www.facebook.com/kevalshudhsatye
प्रणाम जी
सुप्रभात जी
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बहुत कहने से क्या है थोडे से ही समझो की सब कर्मों ,इच्छाओं और सूक्ष्म संसार का बीज मन है, मन को छेदने से ही सब जगत् का छेदन होता है । जब मनरूपी बीज नष्ट होता है तब जगत्रूपी अंकुर भी नष्ट हो जाता है । सब जगत् मन का रूप है, इसके अभाव का उपाय करो । मलीन मन से अनेक जन्म के समूह उत्पन्न होते हैं और इसके जीतने से सब लोकों में जय होती है । सब जगत् मन से हुआ है, मन के रहित होने से देह का भी भास नही होता , जब मन से दृश्य का अभाव होता है तब मन भी मृतक हो जाता है, इसके सिवाय कोई उपाय नहीं ।
मनरूपी पिशाच का नाश और किसी उपाय से नहीं होता । अनेक कल्प बीत गये और बीत जायँगे तब भी मन का नाश न होगा । इससे जब तक जगत् दृश्यमान है तब तक इसका उपाय करे । जगत् का अत्यन्त अभाव चिन्तना और स्वरूप आत्मा का अभ्यास करना यही परम औषध है । इस उपाय से मनरूपी दृष्टा नष्ट होता है जब तक मन नष्ट नहीं होता तब तक मन के मोह से जन्म मरण होता है और जब परमात्मा की मेहर होती है तब मन बन्धन से मुक्त होता है सम्पूर्ण जगत्, मन के विचरण से दिखता है जैसै आकाश में शून्यता दिखते हैं तैसे ही संपूर्ण जगत् मन में दिखता है ।
जैसे पुष्प में सुगन्ध, तिलों में तेल, गुणी में गुण और धर्मी में धर्म रहते हैं तैसे ही यह सत् असत्,स्थूल सूक्ष्म, कारण, कार्यरूपी जगत- मन में रहता है । जैसे समुद्र में तरंग और मरुस्थल में मृगतृष्णा का जल दिखता है वैसे ही चित्त में जगत् दिखता है ।
जैसे सूर्य में किरणें, तेज में प्रकाश और अग्नि में उष्णता है तैसे ही मन में जगत् है । जैसे बरफ में शीतलता, आकाश में शून्यता और पवन में स्पन्दता है तैसे ही मन में जगत् । सम्पूर्ण जगत् मनरूप है, मन जगत्रूप है और परस्पर एकरूप हैं, दोनों में से एक नष्ट हो तब दोनों नष्ट हो जाते हैं । जब जगत् नष्ट हो तब मन भी नष्ट हो जाता है । जैसे वृक्ष के नष्ट होने से पत्र, टास, फूल, फल नष्ट हो जाते हैं और इनके नष्ट होने से वृक्ष नष्ट नहीं होता ...
इसलिय आत्मरूप होकर परमात्मा में निरंतर ध्यान से मन की आंखे मन्द होकर विवेक जाग्रीत होता है जिसके माध्यम से मन रूपी खरपतवार नष्ट होकर आत्मग्यान का बिज अंकुरित हो जाता है..
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