Sunday, January 24, 2016

vani

धनी मै तो सूती नींद में , तुम तो बैठे हो जागृत |
खेल भी तुम दिखावत, बल मेरो कछू ना चलत ||
{खिलवत}
हे परमात्मा मै तो इस संसार में नींद में सो रही हूँ [अर्थात जैसे नींद में हमारा वश नही चलता हम नींद में मन के आधीन  हो जाते है उसी प्रकार ये आत्मा इस संसार में आकर जीव के ऊपर बैठ गयी है
जीव को भी अपना शुद्ध आभास नही होने के कारण ये अंत:करण के अधीन होकर खेल देखता है व् जीवन मरण के चक्र में फसा रहता है जब आत्मद्र्ष्टि जीव के स्वरुप पे बैठती है तो उसके चिदाभास के प्रकाश में खुद को भूल जाती है व् उसकी नजर से आत्मा की नजर जुड़ जाती है जिस कारण ये खुद का स्वरुप भूल के उस जीव के ही अंत:करण के दुआरा दिए हुए भाव के साथ ही सुख और दुःख का दुयेत का खेल देखने में लीन हो जाती है
इसे ही आत्मा की नींद कहा गया है ] पर हे मेरे प्यारे परमात्मा आप तो जागृत हो फिर क्यों नही आप मुझे इस दुयेत के खेल से अदुयेत भाव की और नही ले जाते ?क्योंकि यहाँ नींद में तो मेरा कुछ वश नही चलना जब यहाँ वश आपका ही चलना है तो मुझे यहीं पे अदुयेत का खेल  दिखाइए जिस से मै यहाँ बैठ कर ही अपने मूलस्वभाव का आनंद ले सकूं , क्योंकि हम सब आत्माएं वहां परमधाम में आँखे खोलके आपकी आँखों के मध्यम से ये खेल देख रहे ,इसका अर्थ है की आपने इन जीवो को भी अपनी नजरो में ले रखा है और उन्हें अपने हुकुम से ही चला कर हमे ये खेल दिखा रहे हो , जब आपने ही दिखाना है तो क्यों न आप हमारे लिए अपने घर का खाना भिजवा दो अर्थात अपने अदुये का आनंद हमें यहीं देदो ताकि ये खेल हमारे लिए और ज्यादा आनंददायक बन जाये ....

प्रणाम जी 

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