Sunday, January 3, 2016

माधुर्य भाव..

सुप्रभात जी

* चार भावों होते हैं..
 दास्य, सख्य, वात्सल्य, माधुर्य

 माधुर्य के बारे में जानते हैं.

माधुर्य भाव यानि वे परमात्मा मेरे प्रियतम हैं और मैं उनकी प्रेयसी हूँ, इस भाव से प्रेम. यह सबसे ऊँचा भाव है. इसमें 3 कक्षायें हैं; साधारणी रति, समंजसा रति और समर्था रति.

1)साधारणी रति में केवल अपने ही सुख का ख़याल रखा जाता है, जैसे कुब्जा. यह तीनों कक्षाओं में सबसे नीचे का प्रेम है.

2)समंजसा रति में अपने और उनके ( परमात्मा ) दोनों के ही सुख का ध्यान रखा जाता है, इस प्रेम की उदाहरण हैं द्वारिका की सभी पटरानियाँ. यह साधारणी रति से ऊँचा प्रेम है.

3) अंतिम और सर्वोच्च है समर्था रति का प्रेम, इसमें केवल और केवल प्रियतम के ही सुख का ही ध्यान रखा जाता है, अपने सुख का सर्वस्व त्याग रहता है. इसकी उदाहरण हैं, ब्रज की समस्त गोपियाँ. जिन्होंने एकमात्र परमात्मा के ही सुख के लिए सब कुछ न्योछावर कर दिया.
इस भाव में ही प्रेमी प्रेम के अंतिम क्लास महाभाव तक जाता है. इस महाभाव की भी 2 कक्षाएं हैं; मोदन और मादन महाभाव....
मोदन तक ही जीव जा पाते है बस..
मादन आत्मिक विषय है...
Satsangwithparveen.blogspot.com
प्रणाम जी

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