सुप्रभात जी
हे मेरे जीव के अंतःकरण! तूं सबसे पहल स्वयं के अस्तित्व (मैं) को पूर्णतया समाप्त कर दे ,इसके पश्चात जीव के उर्जावान रूप को आत्म स्वरूप मे लीन करके आत्मस्वरूप हो जाओ यदि तुम ऐसा कर सकते हो तो यह बात निश्चित् रूप से जान लो कि आत्मा के धाम हृदय में परमात्मा अपना आसन जमाएं बैठे हैं। इसमें नाम मात्र के लिये भी संशय मत रखो। एक बार उस अवस्था में आने पर तो तुम्हारे लिये जीवित रहते ही मृत्यु जैसी स्थिति बन जायेगी अर्थात् तुम्हारे लिये इस शरीर और संसार का अस्तित्व नहीं रह जायेगा। यही अध्यात्म का चरम लक्ष्य है।तुम्हारे और परमात्मा के बीच एकमात्र यही एक परदा है। इसके सिवाय अन्य कोई भी बाधा नहीं है। यदि तुमने अपने अन्दर से ‘मैं’ का अस्तित्व समाप्त कर दिया तो इस झूठे संसार में ही तुझे इसी शरीर से परमधाम के सुखों की प्रत्यक्ष अनुभूति होने लगेगी।
प्रणाम जी
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