मुखके सबद मैं बोहोत सुने, इन भी कोई दिन किया पुकार ।
पर घायल भई सो तो कोइक कुलीमें, सो रहत भवसागर पार ।।
मैंने साधु सन्तोंके मुखसे परमात्माकी प्रशंसा और वाणी वारंवार सुनी है. वे बहोत अच्छे ढंग से वाणी व परवचन करतें हैं. वे भी परमात्मा को अनेक ढंग से पुकारते हैं. परनतु अपने को भक्त व गूरू दर्शाने में ज्यादा प्रयासरत रहते है . इसकारण उनकी रहनी कूछ भिन्न हो जाती है . दूैत मे मन लगा कर अदूैत से विमुख हो रहे हैं . इसलिय ये कहा जा सकता है ही वे बाह्यरूपसे परब्रह्म परमात्माको याद करते हैं.कयोंकी परमात्मा आंतरिक विषय है. इसलिय हृदयस्पर्शी वचनोंसे घायल होनेका सदभाव इस कलियुगमें किसी भाग्यशालीको ही प्राप्त होता है. ऐसे भक्तजन इस झूठे भवसागरमें रहते हुए भी इससे परे (मायासे अलिप्त) रहते हैं.
प्रणाम जी
पर घायल भई सो तो कोइक कुलीमें, सो रहत भवसागर पार ।।
मैंने साधु सन्तोंके मुखसे परमात्माकी प्रशंसा और वाणी वारंवार सुनी है. वे बहोत अच्छे ढंग से वाणी व परवचन करतें हैं. वे भी परमात्मा को अनेक ढंग से पुकारते हैं. परनतु अपने को भक्त व गूरू दर्शाने में ज्यादा प्रयासरत रहते है . इसकारण उनकी रहनी कूछ भिन्न हो जाती है . दूैत मे मन लगा कर अदूैत से विमुख हो रहे हैं . इसलिय ये कहा जा सकता है ही वे बाह्यरूपसे परब्रह्म परमात्माको याद करते हैं.कयोंकी परमात्मा आंतरिक विषय है. इसलिय हृदयस्पर्शी वचनोंसे घायल होनेका सदभाव इस कलियुगमें किसी भाग्यशालीको ही प्राप्त होता है. ऐसे भक्तजन इस झूठे भवसागरमें रहते हुए भी इससे परे (मायासे अलिप्त) रहते हैं.
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