Tuesday, January 5, 2016

मन की मलिनता त्यागो

सुप्रभात जी

पहाड़ से चाहे कूदकर मर जाना पड़े तो मर् जाइये, समुद्र में डूब मरना पड़े तो डूब मरिये, अग्नि में भस्म होना पड़े तो भले ही भस्म हो जाइये और हाथी के पैरों तले रुँदना पड़े तो रुँद जाइये परन्तु इस मन के मायाजाल में मत फँसिए । मन तर्क लडाकर विषयरुपी विष    में घसीट लेता है । इसने युगों-युगों से और जन्मों-जन्मों से आपको भटकाया है । परमात्मारुपी घर से बाहर खींचकर संसार की वीरान भूमि में भटकाया है । प्यारे ! अब तो जागो ! मन की मलिनता त्यागो । आत्मस्वरुप में जागो । साहस करो ।  पुरुषार्थ करके मन के साक्षी व स्वामी बन जाओ |
 गीता में भी कहते हैं - हे पार्थ - ऊपर से कर्मेन्द्रियों को बाँध कर जो भीतर से इन्द्रियों के विषयों का चिंतन करते रहते हैं - वे इन्द्रियों में बंधे ही रहते हैं |

आत्मरूप में जागकर परमात्मा से एक रूप हो जाओ...
प्रणाम जी

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