Saturday, January 16, 2016

वाणी

विलायत दई ह्कें इनको , यासों चीज पाइए इसलाम |
तो हिजाब न आड़े वजूद , हिजाब न आड़े काम ||

अपनी आत्माओ  को परमात्मा ने तारतम ज्ञान दुआरा अनेक प्रकार से संसार से  अलग अपनी पहचान करवाई है , इसका केवल तात्पर्य यही है की आत्माओ को
जीव के विवेक दुआर यहीं पे दुवैत में रहते रहते ही अदुवैत की पहचान होने लगती है
इसी अदुवैत के बोध से ही वे परमात्मा के अदुवैत भाव को ग्रहण करती है , इसी भाव के बोध से ही उन्हें परमात्मा के के धाम का शुद्ध अदुवैत ज्ञान होता है
इसी भाव को परमात्मा दुवारा दी गयी धाम की न्यामत कहा जाता है  और ये तो स्वाभाविक ही है की जब ये बोध होजायेगा तो तो उनका परमात्मा में पक्का
 ईमान हो जाता है जो की आत्माओ का धर्म है इसलिए ये कहा जाता है की  आत्माए
अपने धर्म में आ जाती है क्योंकि आत्मवो का धर्म है की वो परमात्मा में ही पूर्ण आनंद प्राप्त करें अर्थात केवल अदुवैत से सम्बन्ध बनाएं दुवैत उनका धर्मं नही है इसलिए ये
परमात्मा से  अपना  धर्म याने इसलाम
प्राप्त करती हैं , परमात्मा दुवारा विवेक दिए जाने पर इनके और परमात्मा के बीच में शरीर भाव आड़े  नही आता और  न ही कोई अन्य काम इनके और  परमात्मा के बीच में आता है ...
इस प्रकार आत्माए परमआत्मा  की कृपा से जीव को भी अपने स्वभाव याने अदुवैत भाव का बोध करा के इसे स्वेम का स्वरुप प्रदान कर देती है ..पर इसके लिए विवेक दुवारा
आत्मावो को अपने स्वाभाव में जागना होगा ..

प्रणाम जी

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