Friday, January 1, 2016

सब सरुप इसक के ..वाणी

सब सरुप इसक के ,इसके मे गुजरान !
आहार बिहार इसक को , सब मे इसक रस पहचान

परमात्मा के ह्रदय से आत्माओं के लिये प्रेम जब अपने सत्य व अनंन्त रूप में अलौकिक आनंद बन कर  शुद्ध रूप से निराकार व साकार की परिधियों से परे जब प्रेम व आनंद रूप मे दृष्यमान होता है तब शब्दो में उसे परमधाम कह देते हैं..इसलिय कल्पना कीजिए उस प्रेम व अनन्त आनंद के दृष्यमान स्वरूप मे सब कुछ कया किसी और त्तव का हो सकता है ?इसलिय वो सारी वस्तुऐं केवल शुद्ध प्रेम से बनी हैं वो सब परेम का ही स्वरूप है..उनके ह्रदय मे से मिलने वाला प्रेम ही आत्माओं का आहार है परमात्मा के प्रेम से ही आतमाओं को करार मिलता है इसलिय इसी में वे ओतप्रोत रहती हैं जिसे कहा गया है की उनका गुजारा इसी से चलता है..ये सब आतमायें परमात्मा का रस निरंतर ग्रहण करती रहती है कयोंकी ये सवंय परमात्मा के प्रेम रस की धारा का स्वरूप हैं इसके इसससे अलग इनकी कोई पहचान नही है..इसलिय आत्मा-परमात्मा को एक ही माना गया है...और हैं भी एक ,जो आत्मा को जानलेता है उसे आत्मा परमात्मा के अदूैत भाव का बोघ हो जाता है..

प्रणाम जी

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