जेता कोई दिल मजाजी, चढ सके न नूर मकान ।
दिल हकीकी पोहोंचे नूर तजल्ला, ए दिल मोमिन अरस सुभान ।।
जो जीव विकारयुक्त अंतःकरण वाले हैं (दिल मजाजी) हैं, उन पर बैठी आत्मांये विकार के ही खेल देखती हैं उन जीवों का दाइत्व है की वे आत्मभाव में आके संसार मे अपनी रहनी मे सुधार करें कयोंकी आत्मा परमात्मा का अंश है जीव भी उसके साथ एक रस होके अपने परम लक्ष्य को पा सकता है अन्यथा वे अपने परम लक्ष्य अखंड आनंद तक नहीं पहुँच पाएगा. ,जो जीव आत्मभाव में आकर अपने आत्म हृदय मे परमात्मा को एक रस पाते हैं (दिल हकीकी) वो ब्रह्मात्माँओ का स्वरूप लेके "अपने" परमधाम (नूरतजल्ला) पहुँच जाते हैं. कयोंकी जीव के हृदय से आत्मा की नजर , आत्मा की नजर से आत्महृदय , आत्महृदय से परमात्मा ,और परमात्मा से परमधाम जुडा है , या साधारण भाषा में कहे की आत्म हृदय में परमात्मा रहते है कयोंकी ब्रह्मात्माओंके हृदयको परमात्माका धाम कहा गया है ,इसलिय जीव अप्रत्यक्ष रूप से परमात्मा से ही जुडा है इसलिय हर जीव का दाइत्व है की वो अपने अंतःकरण को परमात्मा के सनकूल बना के रखे...
प्रणाम जी
दिल हकीकी पोहोंचे नूर तजल्ला, ए दिल मोमिन अरस सुभान ।।
जो जीव विकारयुक्त अंतःकरण वाले हैं (दिल मजाजी) हैं, उन पर बैठी आत्मांये विकार के ही खेल देखती हैं उन जीवों का दाइत्व है की वे आत्मभाव में आके संसार मे अपनी रहनी मे सुधार करें कयोंकी आत्मा परमात्मा का अंश है जीव भी उसके साथ एक रस होके अपने परम लक्ष्य को पा सकता है अन्यथा वे अपने परम लक्ष्य अखंड आनंद तक नहीं पहुँच पाएगा. ,जो जीव आत्मभाव में आकर अपने आत्म हृदय मे परमात्मा को एक रस पाते हैं (दिल हकीकी) वो ब्रह्मात्माँओ का स्वरूप लेके "अपने" परमधाम (नूरतजल्ला) पहुँच जाते हैं. कयोंकी जीव के हृदय से आत्मा की नजर , आत्मा की नजर से आत्महृदय , आत्महृदय से परमात्मा ,और परमात्मा से परमधाम जुडा है , या साधारण भाषा में कहे की आत्म हृदय में परमात्मा रहते है कयोंकी ब्रह्मात्माओंके हृदयको परमात्माका धाम कहा गया है ,इसलिय जीव अप्रत्यक्ष रूप से परमात्मा से ही जुडा है इसलिय हर जीव का दाइत्व है की वो अपने अंतःकरण को परमात्मा के सनकूल बना के रखे...
प्रणाम जी
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