Friday, January 8, 2016

मेरे धनी तुमारी साहेबी

मेरे धनी तुमारी साहेबी, तुम अपनी राखो आप।
इस्क दीजे मोहे अपनों, मैं तासों करूं मिलाप।।

इय संसार में मान प्रतिष्ठा रूपी जहर ऐसा है की इस विष से बच पाना अत्यन्त ही मुश्किल है बडे बडे संत या गुरू कहलाने वाले भी इस जहर के कारण माया में ही गोते लगा रहे हैं इस लिय माहाममती जी ने अपने माध्म से हमें सिखापन किया है की हे परमात्मा हम आपके हुकुम से आत्मांओ की सेवा में लगे हुए है, ये काम आपके हुकुम व मेहर से ही हो रहा है , इस कार्य में सुंदरसाथ से भी प्रेम व सहयोग मिलता है पर कइ बार अग्यानवश सुंदर साथ हमे आपके ही समान समझ कर वैसा ही व्यवहार करने लगते हैं ,कइ बार तो इसपंचभौतिक शरीर की आरती तक उतारी जाती है और हम इसे और पाने की लालसा में आपसे विमुख हो जाते हैं , ये आपसे विमुख होना ही हम बृह्मआत्मांओ के लिय जहर के समान है..इसलिय मेरी आपसे प्रार्थना है की ये मान संम्मान रूपि साहेबी  इसे आप अपने ही पास रखिए। मुझे इसकी जरा भी आवश्यकता नहीं हैं। मुझे तो केवल आप अपना इश्क अपना प्रेम ही दीजिए, जिससे मैं पल - पल आपका दीदार करती रहूं।

प्रणाम जी

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