Tuesday, July 28, 2015

 प्रणाम जी
प्रशन -परारब्द कया है कया परारब्द से हम मुक्त हो सकते है ??

प्रारब्ध कर्म---("प्रकर्षेण आरब्धः प्रारब्धः" अर्थात अच्छी तरह से फल देने के लिए जिसका आरंभ हो चुका है,वह प्रारब्ध है)
संचित मे से जो कर्म फल देने के लिए उन्मुख होते है ,उन कर्मो को प्रारब्ध कर्म कहते हैं।प्रारब्ध कर्मो का फल अनुकूल या प्रतिकूल परिस्थिति के रूप मे सामने आता है;परंतु उन प्रारब्ध कर्मो को भोगने के लिए प्राणियों की प्रवृत्ति तीन प्रकार की होती है-1स्वेच्छा पूर्वक,2.अनिच्छा पूर्वक ,3.परेच्छा पूर्वक ।
कर्मो का फल 'कर्म' नही होता,प्रत्युत 'परिस्थिति' होती है अर्थात प्रारब्ध कर्मो का फल परिस्थिति रूप से सामने आता है। प्रारब्ध कर्मो से मिलने वाले फल के दो भेद होते है-'प्राप्त फल' और 'अप्राप्त फल'। वर्तमान काल मे सबके सामने जो अनुकूल या प्रतिकूल परिस्थिति आती है उसे 'प्राप्त फल' और जो अनुकूल या प्रतिकूल परिस्थिति भविष्य मे आने वाली है वो "अप्राप्त फल' कही जाती है।
क्रियमाण कर्मो का जो फल -अंश संचित मे रहता है,वही प्रारब्ध बनकर अनुकूल,प्रतिकूल और मिश्रित परिस्थिति के रूप मे बनकर मनुष्य के सामने आता है।अतः जबतक संचित कर्म रहते है, तब तक प्रारब्ध बनता ही रहता है और प्रारब्ध परिस्थिति के रूप मे परिणत होता ही रहता है

प्रारब्द से मुक्ति का उपाए



जो आत्म चिंतन में लीन रहते है जो सत्ये मार्गी बनना चाहते हैं जो अभी मार्ग तलाश रहे हैं यदि उनको जग का भी आभास है तो या उनका मन अभी जग से नही हटा है तो समझना चाहिए की उनके प्रारब्द अभी उनकी बाधा बने हुए हैं जब तक सुख दुःख अनुभव होते  है तब तक प्रारब्द ही माना जायेगा इसको समाप्त करने का उपाए परमात्मा की प्रेरणा से आपको बताने का प्रयास किया जा रहा है अत: सावधानी पूर्वक ग्रहण करें |

जिस प्रकार स्वप्न में किये हुए कर्म स्वप्न टूटते ही नष्ट हो जाते है ठीक वेसे ही जब हमे निज स्वरुप का बोध हो जाता है तो हमारे सरे संचित कर्म नष्ट हो जाते हैं जिस प्रकार सपने के पाप पुण्ये का कभी फल नही मिलता उसी प्रकार जब ये संसार स्वप्न जैसा प्रतीत होने लगेगा तो  हम भी इस के कर्म बंधन से मुक्त हो जायेंगे जिस प्रकार शराब के जाम में मदिरा डाल देने से जाम को नशा नही होता वह उस से अछुता रहता है उसी प्रकार हम भी इस संसार के कर्मो और प्रारब्द से मुक्त रहेंगे |
कहा जाता है की कर्म सब को भोगना पड़ता है और प्रारब्द बड़ा बलवान है  पर जो सदा चित को परमात्मा में स्थित रखते है उनको प्रारब्द नही सताता उसके सभी संचित और वर्तमान के कर्मों से मुक्ति मिल जाती है
क्योंकि परमात्मा में चित रखने वाले का भाव हमेशा जागृत रहता है क्योंकि परमात्मा स्वपन से परे  है इसलिए वो सदेव जागृत है उनमे ध्यान लगाने वाला भी जागृत भाव में आ जाता है और उसको स्वपन के कर्म (संगृहीत और वर्तमान व भविष्य )  से छुटकारा मिल जाता है ....

 प्रणाम जी 

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