Wednesday, July 22, 2015

वाणी

आपण निद्रा केम करूं, निद्रानो नथी लाग।
भरमनी निद्रा जे करे, कांई तेहेनो ते मोटो अभाग।।

भला अब मैं माया की नींद में क्यों फँसू ? मुझे किसी भी प्रकार से इस मायावी नींद से अपना सम्बन्ध नहीं रखना है। तारतम वाणी के अवतरण के पश्चात् भी जो सुन्दरसाथ इस माया की नींद में उलझे हुए हैं, निश्चित रूप से वे बहुत अधिक भाग्यहीन (बदनसीब) हैं।जिस प्रकार रात्रि के समय गहरी नींद में सो जाने वाला व्यक्ति स्वयं को तथा संसार को पूरी तरह से भूला रहता है, उसी प्रकार जो लौकिक कार्यों(अर्थोपार्जन, पारिवारिक कर्त्तव्यों के पालन तथा विषय भोग) को ही सब कुछ मानकर प्रियतम अक्षरातीत तथा निज स्वरूप को भूला रहता है, उसे माया की नींद में सोया हुआ कहते हैं। अक्षरातीत के प्रेम को प्राथमिकता देकर लौकिक कार्यों को करना नींद में फंसना नहीं है, बल्कि राजा जनक एवं महाराजा छत्रसाल का निष्काम कर्मयोग मार्ग है, जो संसार में रहते हुए भी संसार से परे रहे....

प्रणाम जी

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