Monday, July 27, 2015

पूजनिय कौन



तिन कबीले में रहना , पूजे  पानी  आग पत्थर।
बेसहूर  इन   भांत   के , जान  बूझ  जले  काफर।।
जड़ पूजा को वाणी तथा अन्य ग्रंथो में वर्जित  किया  गया है।
इसको अन्य उदाहरणों से समझें-
अंधतमः प्रविशन्ति ये सम्भूति उपासते.- यजुर्वेद
जो १ चेतन परमात्मा को छोड़कर जड़ की उपासना करता है, वह घोर अंधकार  में चला जाता है.
कबीर जी कहते हैं-
पत्थर पूजे हरी मिले तो मै पूजू पहाड़।।

पुराण संहिता के इश्क़ रब्द के प्रसंग में अक्षरातीत राज जी कहते हैं-
फूल्ल पद्मम् सरः त्यक्त्वा मृगतृष्णाम् नु धावथः।
मामानन्दम् परित्यज्य पाषणम् पूजयिष्यथः।।
मेरे आनंद को छोड़कर तुम संसार में पत्थर की पूजा करोगे और वही हो रहा है।
आज ब्रम्हज्ञान के आने के बाद भी अगर हम जड़ की पूजा करते रहे तो तारतम ज्ञान लेने का कोई लाभ नहीं है.
इसलिए चेतन परमात्मा की उपासना करें।
Satsangwithparveen.blogspot.com

प्रेम प्रणाम जी

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