Thursday, July 16, 2015

सत्य की और

जो लोग मूर्तियों और फोटो में झांकते है
वो मेरे प्रिय की सुंदरता को बहोत कम करके आंकते है ..

उनको ये काम दुनिया का दस्तूर लगता है
पर मूर्त में ढूंढ़ना  मुझे ह्रदये से दूर लगता है

अगर  उनकी  छवि  मंदिर  मस्जिद  या  मूर्ति  में  रहती  है
तो  क्या  वाणी  झूटी  है  जो  अर्श  दिल  मोमिन  कहती  है ..

उनकी छवि अलोकिक और उपमा से परे है
पर मंदिरो में तो हमारी कल्पना के रूप धरे है

वो सत चित आनंद है हृदये में यही गुण लाते है
पर हम तो जड़ मूर्ति  को सर झुकाते है

ध्यान रहे
 वो प्रेम और आनंद है  उनको ह्रदये में छुपा के रखना होगा
उनको बाहर कही बता कर उनसे दूर होने से बचना होगा  ..

छोटा सा जीवन  है जल्दी से काम बना लो
विरह में खुद को तपा के उनको अपने हृदये मे बसा लो
Satsangwithparveen.blogspot.com(सत्य की और)
प्रणाम जी
( राज जी की प्रेरणा से )

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