Wednesday, July 22, 2015

लक्षय परमात्मा

सच्चे साधकोंको अपनी साधनाका लक्ष्य परमात्मा ही बनाना चाहिए । बाह्य साधनासे भौतिक जगतका लाभ प्राप्त होता है तो प्रेम साधनासे परमात्माकी प्राप्ति होती है । इसीलिए महापुरुषोंने भौतिक साधनाको महत्त्व न देकर प्रेम साधनाका ही महत्त्व समझाया है और उसीके लिए प्रेरणा दी है ।  अंतःकरणकी शुद्धि होने पर हृदयसे प्रेम प्रकट होता है । प्रेममें इतनी शक्ति होती है कि वह आत्माको इसी शरीरमें रहते हुए ही परमधामका अनुभव करवा सकती हैं । बाह्य साधनाएँ कोटि प्रयत्नोंसे भी परमात्माकी अनुभूति नहीं करवा सकता है जबकि प्रेम साधना क्षणमात्रमें अनुभव करवाती है । इसीलिए इसकी सर्वोपरिता बताई गई है । प्रेम साधना दिलकी साधना है । जबतक दिलकी साधना नहीं होगी तब तक परमात्माकी प्राप्ति नहीं होगी ।

तोलों ना पिउ पाइए, जालों न साधे दिल


प्रणाम जी

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