Tuesday, July 28, 2015

साकाम कर्म हानीकारक



मनुष्य स्वभावतः सकाम कर्म ही करता है । पहले वह कुछ कामनायें करता है फिर उसकी पूर्ति के लिये योजना बनाता है और कर्म में प्रवृत्त होता है । यदि उस योजना के अनुसार उसे अपना इच्छित फल नहीं प्राप्त होता तो वह या तो कर्म त्याग देता है या उसकी दिशा मोड़ देता है । किन्तु कर्म करने का यह सही तरीका नहीं है । संभव है इस प्रकार कामना करते हुये कर्म करने से उसे कुछ या बहुत सारे भोग पदार्थ प्राप्त हो जायें और उसे लगे कि वह जीवन में सफल है, फिर भी हम कह सकते हैं कि न तो उसका कर्म करने का तरीका ठीक है और न ही वह सफल है । यहाँ हम सकाम कर्मों के कुछ दोषों का उल्लेख करते हैं जिनका भगवान श्रीकृष्ण ने गीता में वर्णन किया है ।
सकाम कर्म का एक दोष 'प्रत्यवाय' है । इसका अर्थ है - 'विपरीत फल' । सकाम कर्म यदि विधिपूर्वक पूरा नहीं किया जाता तो फल प्राप्त होने के बदले हानि भी हो सकती है । यदि कोई धन कमाने के लिये व्यापार प्रारम्भ करे तो उसे अपने पास से कुछ धन उसमें लगाना पड़ेगा । अब यदि वह समय से वस्तुओं को खरीदे-बेचे नहीं, आलस्य करे या मन लगाकर व्यापार न करे तो लाभ होने के बदले उसकी अपनी पूँजी भी कम हो जायेगी । इसी प्रकार स्वस्थ होने की कामना से गलत औषधि का सेवन करना या पथ्य का भली-भाँति पालन न करना घातक हो जाता है ।
सकाम कर्म का एक दोष बुद्धि की निश्चयात्मकता का ह्रास होना है । गीता में भगवान कहते हैं-
भोगैश्वर्यप्रसक्तानां तयापहृतचेतसाम् ।
व्यवसायत्मिका बुद्धिः समाधौ न विधीयते ।।२-४४।।
जो लोग भोग व ऐश्वर्य में अत्यन्त आसक्त होते हैं उनकी कर्मफल पाने की इच्छा और चिन्ता के कारण सत् -असत् विवेक क्षमता समाप्त हो जाती है । व्यवसायात्मिका बुद्धि न होने के कारण वे सर्वो साध्य को भूलकर साधनभूत कर्मों में ही लिप्त रहते हैं ।

निषकर्श-- कर्मो में आशक्त न हो कर सर्वो साध्य परमात्मा को साधना चाहिय..
Satsangwithparveen.blogspot.com
प्रणाम जी

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