चार पदार्थ पामिया रे , ऐ थी लीजिये धन अखण्ड ।
अवसर आ केम भूलिये , जेथी धणी थाय ब्रह्माण्ड ।। ( श्री मुख वाणी- किरन्तन १२८/४९)
अर्थात् चार अनमोल पदार्थ यथा कलयुग , भारतवर्ष , मनुष्य तन और ब्रह्मज्ञान ( तारतम ) पाकर इन्हें व्यर्थ नहीं खोना चाहिए , अपितु प्रत्येक क्षण का सदुपयोग कर अखण्ड धन (परब्रह्म का साक्षात्कार ) प्राप्त करना चाहिए ।
महामुनि कपिल जी सांख्य दर्शन में कहते हैं कि तीनों प्रकार के दुखों ( दैहिक, दैविक, भौतिक ) से पूर्ण रूप से छूटकर ब्रह्मानन्द को प्राप्त करना ही जीवन का सबसे बड़ा पुरुषार्थ है। ( सांख्य १/१ )
प्रणाम जी
अवसर आ केम भूलिये , जेथी धणी थाय ब्रह्माण्ड ।। ( श्री मुख वाणी- किरन्तन १२८/४९)
अर्थात् चार अनमोल पदार्थ यथा कलयुग , भारतवर्ष , मनुष्य तन और ब्रह्मज्ञान ( तारतम ) पाकर इन्हें व्यर्थ नहीं खोना चाहिए , अपितु प्रत्येक क्षण का सदुपयोग कर अखण्ड धन (परब्रह्म का साक्षात्कार ) प्राप्त करना चाहिए ।
महामुनि कपिल जी सांख्य दर्शन में कहते हैं कि तीनों प्रकार के दुखों ( दैहिक, दैविक, भौतिक ) से पूर्ण रूप से छूटकर ब्रह्मानन्द को प्राप्त करना ही जीवन का सबसे बड़ा पुरुषार्थ है। ( सांख्य १/१ )
प्रणाम जी
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