स्वर्ग नरक है या नही??
शंकराचार्य का कथन है कि तृष्णा का नाश ही स्वर्ग का पद है। इस कथन से इतना तो स्पष्ट है ही कि हमें किसी स्थल विशेष को स्वर्ग नहीं समझ लेना चाहिए। स्वर्ग हमारी आन्तरिक दशा ही है।गीता के अनुसार काम, क्रोध और लोभ नरक के तीन द्वार हैं। इन तीनों को एक शब्द में तृष्णा भी कह सकते है। तृष्णा के कारण मनुष्य पाप कर्म करता है और नरक जाता है। उसे इस जीवन में और आगे आने वाले जीवन में नाना प्रकार की यातनायें भोगनी पडती हैं। तृष्णा नष्ट हो जाने पर काम, क्रोध आदि विकार नहीं रह जाते। निर्विकार मन से कोई पाप नहीं करता। वह तो पुण्य कार्य ही करता है। पुण्यों के कारण अपने अन्दर जो सुखानुभूति होती है वह स्वर्ग ही है। यह सुखानुभूति घटती-बढती और आती-जाती रहते है, इसलिए इसे लोक ही समझना चाहिए। यह मुक्ति की अवस्था नहीं है।
(मणिरत्नमाला से उदधृत)
Satsangwithparveen.blospot.com
प्रणांम जी
शंकराचार्य का कथन है कि तृष्णा का नाश ही स्वर्ग का पद है। इस कथन से इतना तो स्पष्ट है ही कि हमें किसी स्थल विशेष को स्वर्ग नहीं समझ लेना चाहिए। स्वर्ग हमारी आन्तरिक दशा ही है।गीता के अनुसार काम, क्रोध और लोभ नरक के तीन द्वार हैं। इन तीनों को एक शब्द में तृष्णा भी कह सकते है। तृष्णा के कारण मनुष्य पाप कर्म करता है और नरक जाता है। उसे इस जीवन में और आगे आने वाले जीवन में नाना प्रकार की यातनायें भोगनी पडती हैं। तृष्णा नष्ट हो जाने पर काम, क्रोध आदि विकार नहीं रह जाते। निर्विकार मन से कोई पाप नहीं करता। वह तो पुण्य कार्य ही करता है। पुण्यों के कारण अपने अन्दर जो सुखानुभूति होती है वह स्वर्ग ही है। यह सुखानुभूति घटती-बढती और आती-जाती रहते है, इसलिए इसे लोक ही समझना चाहिए। यह मुक्ति की अवस्था नहीं है।
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