Wednesday, July 22, 2015

भक्ति साधना

लोहेके टुकड़ेको चुम्बकके साथ एक ही दिशामें घसने(रगड़ने) लगेंगे तो वह भी चुम्बकीय गुण प्राप्त करता है । इस प्रक्रियामें चुम्बकसे लोहेके टुकड़ेमें चुम्बकीय शक्ति नहीं जाती है अपितु चुम्बकके साथ एक दिशामें घर्षण होने पर लोहेके टुकड़ेके अणु-परमाणुओंको एक दिशा प्राप्त होती हैं । शक्ति तो उन्हीं अणुओंमें है किन्तु वे एक दिशामें न होनेसे संगठित नहीं हो पाते हैं । चुम्बकके संसर्गसे उन्हें एकदिशा प्राप्त होती है जिससे उन अणुओंकी शक्ति प्रकट होती है । इस प्रकार एक सामान्य लोहा चुम्बक बन जाता है ।

इसी प्रकार मनुष्यके अन्तःकरणकी वृत्तियाँ, जो चारों दिशाओंमें फिरती रहती हैं, साधनाके द्वारा एक सही दिशा प्राप्त करती हैं । उससे अपार शक्ति प्रकट होती है उसीको लोगोंने सिद्धि कहा है । ऐसी साधना सद्गुरुके मार्गदर्शनमें हो तो व्यक्तिके अन्तःकरणकी वृत्तियोंको परमात्माकी दिशा प्राप्त होती है जिससे व्यक्ति परमात्माके दर्शन तथा अनुभव प्राप्त कर सकता है । इसीको भक्ति साधना कहा है ।
भक्ति साधनाके द्वारा आत्माकी अनुभूति होती है, परमात्माकी अनुभूति होती है और परमधामकी अनुभूति होती है । भक्तिमें समर्पण होता है । समर्पण प्रेमसे ही सम्भव है इसलिए भक्ति साधनाको प्रेम साधना भी कहा है ।

प्रणाम जी

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