बोली सबों जुदी परी, नाम जुदे धरे सबन।
चलन जुदा कर दिया, ताथें समझ ना परी किन।।
परमात्मा अपनी आत्माओ को जागृत करने के लिए अलग अलग जगह पे अलग अलग शरीरो पे अपनी शक्ति को भेजते है | क्योंकि हमारी पृथ्वी में जलवायु और भोगोलिक भिन्नता है इसलिए भाषा में भी बोहोत भिन्नता पाई जाती है इस लिए परमात्मा को जहा भी अपनी शक्ति जोश या आवेश से अपनी आत्मवो को जगाना होता है वो उनको उनकी ही भाषा में ज्ञान देते है इसलिए जब वो भारत में आये तो राम कृषण के रूप में आके अपना ज्ञान दिया जब और कहा की इश्वर एक है जब वो अरब में गए तो मोहोमद साहिब से कहलवाया की कुल हु अलाहअहद (इश्वर एक है) जब पश्चिम में गए तो वहां कहा सुप्रीम ट्रुथ गोड इस ओनली वन जब सिखों में जगाने गये तो कहा नानक एको सुमेरिये इस प्रकार जहा भी गये वहीं की भाषा में ज्ञान दिया लेकिन हम उनके स्वरूप को नही पहचान सके और रूप में ही अटक के रह गए या भाषा में ही अटके रहे सार नही समझ सके इसलिए अज्ञान वश हमने उनको पाने की पूजा पद्धति भी अपनी अपनी अलग बना ली इसलिए जब मन झूटे वजुदो में अटक गया तो मन में परमात्मा का आनंद आने के बजाये झूटे वजुदो की जड़ता का समावेश होता गया व् जड़ता के कारण हम धर्म के नाम पे आपस में ही लड़ने लगे क्योंकि हमे वही सच लगने लगा जो जाहिरी रूप से दीखता है इसलिए सत्ये से दूर होते गए पर जो परम सत्ये है उसको जानने का प्रयास कोई नही करता आज भी हम झूटे चित्रों में परमात्मा की सुन्दरता को सिमित कर के खुश हो रहे है ये नही देखते की वो अनंत सूर्यो से भी ज्यादा तेजवान स्वयें आनंद शुद्ध सुन्दर प्रनात्मा का स्वरुप केसा होगा हम बस थोड़े में ही संतुष्ट हो जाते है इसलिए मेरी आपसे कर बद्ध प्रार्थना है की सत्ये के सार को समझें बातूनी समझ रखें जाहिरी समझ कलह और अज्ञान को जनम देती है ....
प्रणाम जी
चलन जुदा कर दिया, ताथें समझ ना परी किन।।
परमात्मा अपनी आत्माओ को जागृत करने के लिए अलग अलग जगह पे अलग अलग शरीरो पे अपनी शक्ति को भेजते है | क्योंकि हमारी पृथ्वी में जलवायु और भोगोलिक भिन्नता है इसलिए भाषा में भी बोहोत भिन्नता पाई जाती है इस लिए परमात्मा को जहा भी अपनी शक्ति जोश या आवेश से अपनी आत्मवो को जगाना होता है वो उनको उनकी ही भाषा में ज्ञान देते है इसलिए जब वो भारत में आये तो राम कृषण के रूप में आके अपना ज्ञान दिया जब और कहा की इश्वर एक है जब वो अरब में गए तो मोहोमद साहिब से कहलवाया की कुल हु अलाहअहद (इश्वर एक है) जब पश्चिम में गए तो वहां कहा सुप्रीम ट्रुथ गोड इस ओनली वन जब सिखों में जगाने गये तो कहा नानक एको सुमेरिये इस प्रकार जहा भी गये वहीं की भाषा में ज्ञान दिया लेकिन हम उनके स्वरूप को नही पहचान सके और रूप में ही अटक के रह गए या भाषा में ही अटके रहे सार नही समझ सके इसलिए अज्ञान वश हमने उनको पाने की पूजा पद्धति भी अपनी अपनी अलग बना ली इसलिए जब मन झूटे वजुदो में अटक गया तो मन में परमात्मा का आनंद आने के बजाये झूटे वजुदो की जड़ता का समावेश होता गया व् जड़ता के कारण हम धर्म के नाम पे आपस में ही लड़ने लगे क्योंकि हमे वही सच लगने लगा जो जाहिरी रूप से दीखता है इसलिए सत्ये से दूर होते गए पर जो परम सत्ये है उसको जानने का प्रयास कोई नही करता आज भी हम झूटे चित्रों में परमात्मा की सुन्दरता को सिमित कर के खुश हो रहे है ये नही देखते की वो अनंत सूर्यो से भी ज्यादा तेजवान स्वयें आनंद शुद्ध सुन्दर प्रनात्मा का स्वरुप केसा होगा हम बस थोड़े में ही संतुष्ट हो जाते है इसलिए मेरी आपसे कर बद्ध प्रार्थना है की सत्ये के सार को समझें बातूनी समझ रखें जाहिरी समझ कलह और अज्ञान को जनम देती है ....
प्रणाम जी
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