Sunday, July 26, 2015

सही मार्ग

खोजें कोई न पावहीं, वार ना पाइए पार।
ले बुत बैठावें देहुरे, कहें हमारा करतार।।
(pr14/sanandh)

यहाँ पर कई लोग परमात्माकी खोज करते हैं किन्तु उन्हें प्राप्त नहीं कर सके. कयोंकी वे तीन गुणों की भक्ती मे ही आत्म कल्याण की खोज करते रहे जबकी परमात्मा गुणातीत हैं . वे शब्दो को जप के संतुष्ट रहे पर परमातमा शब्दातीत है . वे इस भवसागरका ही ओर-छोर नहीं पा सके, इसलिए देवालयोंमें र्मूितको पधराकर कहने लगे कि यही हमारे परमात्मा (करतार) है..इसलि वो धर्म विरोधी हो गये कयोंकी ....
शतपथ ब्राह्मण का कथन है कि जो एक परब्रह्म को छोड़कर अन्य की भक्ति करता है , वह विद्वानों में पशु के समान है (शतपथ ब्राह्मण १४/४/२/२२) ।

वेद का कथन है कि उस अनादि अक्षरातीत परब्रह्म के समान न तो कोई है , न हुआ है और न कभी होगा । इसलिए उस परब्रह्म के सिवाय अन्य किसी की भक्ति नहीं करनी चाहिए (ऋग्वेद ७/३२/२३)

भागवत कहती है..

यस्यात्मबुद्धि: कुणपे त्रिधातुके
स्वधी: कलत्रादिषु भौम इज्यधी: ।
यत्तीर्थ बुद्धि: सलिले न कर्हिचि ज्जनेष्वभिज्ञेषु स एव गोखर: ॥
(भागवत १०/८४/१३)

भावर्थ वसुदेवजीके यज्ञ महोत्सव में श्री कृष्णजी उपदेश देते हैं - हे महत्माओं एवं सभासदों । जो मनुष्य कफ़, वात, पित्त इस तीन धातुओं से बने हुए शव तुल्य शरीर को ही "आत्मा, मैं" स्त्री पुत्र आदि को ही अपना और मिट्टि, पत्थर, लकडी आदि पार्थिव विकारों को ही "इष्टदेव" मानता है तथा जो केवल जल को ही तिर्थ समझता है लेकिन ज्ञानी महापुरुषों (चल तीर्थ) को तीर्थ नहीं समझता है, वह मनुष्य होने पर भी पशुओं में नीच गधा के समान है..
Satsangwithparveen.blogspot.com
प्रणाम जी

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