इन जेहेर जिमीसे कोई ना निकस्या, अमल चढयो अति भारी ।
मुझ देखते सैयल मेरी, कैयों जीत के बाजी हारी।।
(वाणी मेरे पियू की न्यारी जो संसार)
इस संसारमें मोह-माया और अहङ्कारका विष इतना अधिक फैल गया है कि उनमेंसे कोई भी बाहर निकल नहीं सकता. कयोंकी सब उलटे रसते पर जा रहे है ..और जो सीधा है उसका किसी को अभ्यास नही है ...रस्ते केवल दो ही है एक जड़ और दूसरा चेतन जब हम जड़ पूजा की और जा रहे होते हैं तो चेतन को पीठ रहती है जब चेतन को जाते हैं तो जड को..अगर कोइ ये सोचता है की वो जड़ से चेतन को पा लेगा तो यह बहोत बडा भ्रम है ..पर अन्नत जन्मों से जड़ पूजा के कारण जीव के कारण शरीर मे जड़ता संसकार रूप मे विरामान है इसलिय इसे चेतन की बात विपरीत या धर्म विरोधी लगती हैं..मार्ग बताने वाले भी इसी रोग से ग्रसित होने के करण यह बिमारी पिढी दर पिढी चली आ रही है ..सब कीसी के बताए रस्ते पर जा रहे हैं .. खुद की खोज कोइ नही करना चाहता ..जो की आत्म कल्याण के लीय परम आवशयक है.. इसलिय मेरे देखते-देखते अनेक लोगोंने यह मानव-तनरूपी शुभावसर प्राप्त करके भी उसे गँवा दिया.
Satsangwithparveen.blogspot.com
प्रणाम जी
मुझ देखते सैयल मेरी, कैयों जीत के बाजी हारी।।
(वाणी मेरे पियू की न्यारी जो संसार)
इस संसारमें मोह-माया और अहङ्कारका विष इतना अधिक फैल गया है कि उनमेंसे कोई भी बाहर निकल नहीं सकता. कयोंकी सब उलटे रसते पर जा रहे है ..और जो सीधा है उसका किसी को अभ्यास नही है ...रस्ते केवल दो ही है एक जड़ और दूसरा चेतन जब हम जड़ पूजा की और जा रहे होते हैं तो चेतन को पीठ रहती है जब चेतन को जाते हैं तो जड को..अगर कोइ ये सोचता है की वो जड़ से चेतन को पा लेगा तो यह बहोत बडा भ्रम है ..पर अन्नत जन्मों से जड़ पूजा के कारण जीव के कारण शरीर मे जड़ता संसकार रूप मे विरामान है इसलिय इसे चेतन की बात विपरीत या धर्म विरोधी लगती हैं..मार्ग बताने वाले भी इसी रोग से ग्रसित होने के करण यह बिमारी पिढी दर पिढी चली आ रही है ..सब कीसी के बताए रस्ते पर जा रहे हैं .. खुद की खोज कोइ नही करना चाहता ..जो की आत्म कल्याण के लीय परम आवशयक है.. इसलिय मेरे देखते-देखते अनेक लोगोंने यह मानव-तनरूपी शुभावसर प्राप्त करके भी उसे गँवा दिया.
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