Monday, July 27, 2015

कई  दरवाजे  खोजे  कबीरें ,     बैकुण्ठ  सुन्य  सब  देख्या ।

आखिर  जाए  के  प्रेम  पुकारया ,  तब  जाए  पाया  अलेखा ।। ( श्री मुख वाणी- कि. ३२/१० )

कबीर जी ने ब्रह्म प्राप्ति के लिए अनेक मार्गों को अपनाया । उन्होंने वैकुण्ठ-शून्य सबकी अनुभूति की । अन्त में जब प्रेम की सच्ची राह पकड़ी , तब उन्हें उस अलख अगोचर ब्रह्म की प्राप्ति हुई ।

अक्षरातीत पूर्ण ब्रह्म का साक्षात्कार करने के लिए हमें शरीर, मन, बुद्धि आदि के धरातल पर होने वाली उपासना पद्धतियों को छोड़कर श्री प्राणनाथ जी की तारतम वाणी के आधार पर उस मार्ग का अवलम्बन करना पड़ेगा, जिसके विषय में गीता में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि 'पुरुषः स परः पार्थ भक्त्या लभ्यस्तु अनन्यया' अर्थात् वह परब्रह्म अनन्य प्रेम लक्षणा भक्ति द्वारा प्राप्त होता है, जो नवधा आदि सभी प्रकार की उपासना पद्धतियों से भिन्न है। अखण्ड मुक्ति की प्राप्ति भी इसी अनन्य प्रेम द्वारा होती है ..

प्रणांम जी

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