ज्यारे धणी धणवट करे, त्यारे बल वेरीनां हरे।
वली गयां काम सराडे चढे, मन चितव्यां कारज सरे ।।
जब प्रमात्मा मेहर करते हैं अर्थात् अपनी शरणमें लेते हैं तब शत्रुका बल (माया)भी हरण कर देते हैं,
इसके विषय मे बातुनी भेद जानना आवश्यक है की परमात्मा की मेहर का कोइ समय विषेश नही होता अर्थात ऐसा नही है की वो कीसी दिन मेहर (कृपा)करेंगे ..बस यही ना समझ पाने के कारण हम उनकी मेहर का इन्तजार करके जीवन व्यर्थ गवां देते हैं(उनकी मेहर हम पर निरंतर हो रही है बस जिस दिन हम उस को एहसास में लेलेंगें बात बन जायगी व नित नय अहसास होने लगेंगें जरूरत है फरामोशी से सोफिय में आनें की) जिस दिन हम ये कर लेंगे उसी क्षण बिगडे हुए काम पुनः ठीक हो जाते हैं और मनोवाञ्छित कार्य भी सिद्ध होते हैं. अर्थात सत्य और माया का बोध हो जाता है व सत्य के लिये प्रेम जाग्रीत हो जाता है...
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प्रणाम जी
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