पद गाए मन हरषियां, साषी कह्यां अनंद ।
सो तत नांव न जाणियां, गल में पड़िया फंद ॥
भावार्थ - मन हर्ष में डूब जाता है भजन गाते हुए, और कथा सुन्ने में भी आनन्द आता है । लेकिन सारतत्व को नहीं समझा, और हरिनाम का मर्म न समझा, तो गले में फन्दा ही पड़नेवाला है | अर्थात बृह्म को जाने बिना कुछ भी करलो सब व्यर्थ है..
वेद में कहा है- उस धीर, अजर, अमर, नित्य तरुण परब्रह्म को ही जानकर विद्वान पुरुष मृत्यु से नहीं डरता है (अथर्ववेद १०/८/४४ )
इह चेदवेदीदथ सत्यमस्ति ।
न चेदिहावेदीन महती विनष्टिः ॥
’यदि इस जीवन में ब्रह्मज्ञान प्राप्त कर लिया या परमात्मा को जान लिया, तब तो जीवन की सार्थकता है और यदि इस जीवन में परमात्मा को नहीं जाना तो महान विनाश है ।’ (केनोपनिषद : २.५)
satsangwithparveen.blogspot.in
प्रणाम जी
सो तत नांव न जाणियां, गल में पड़िया फंद ॥
भावार्थ - मन हर्ष में डूब जाता है भजन गाते हुए, और कथा सुन्ने में भी आनन्द आता है । लेकिन सारतत्व को नहीं समझा, और हरिनाम का मर्म न समझा, तो गले में फन्दा ही पड़नेवाला है | अर्थात बृह्म को जाने बिना कुछ भी करलो सब व्यर्थ है..
वेद में कहा है- उस धीर, अजर, अमर, नित्य तरुण परब्रह्म को ही जानकर विद्वान पुरुष मृत्यु से नहीं डरता है (अथर्ववेद १०/८/४४ )
इह चेदवेदीदथ सत्यमस्ति ।
न चेदिहावेदीन महती विनष्टिः ॥
’यदि इस जीवन में ब्रह्मज्ञान प्राप्त कर लिया या परमात्मा को जान लिया, तब तो जीवन की सार्थकता है और यदि इस जीवन में परमात्मा को नहीं जाना तो महान विनाश है ।’ (केनोपनिषद : २.५)
satsangwithparveen.blogspot.in
प्रणाम जी
No comments:
Post a Comment