एक गोपी उपर से कूड़ा फेंक रही थी। तो कूड़ा फेंकते हुए उसने आँख मींचते हुए कहा-'
'कृष्णार्पणमस्तु।'
वहाँ से जा रहे थे एक महात्मा। महात्मा ने पूछा- 'मैया,चन्दन(चढ़ाती) हो ? आरती उतारती हो ? फूल (चढ़ाती) हो? जय-जयकार शंख बजाती हो ? हमने सब भक्तों को सुना, लेकिन तू तो कूड़ा चढ़ा रही है।
'उस गोपी ने नीचे आकर महात्मा का हाथ पकड़ लिया। वह गोपी थी बड़ी तेज। उसने कहा-'मेरा धर्म बिगाड़ता है ?'
'क्यों ?'
'प्राण उसे दिया, मन उसे दिया, जीवन उसे दिया तो कूड़ा देने के लिए किसी और का हाथ (पकड़ूँ)?
'यह अनन्यता है।......'
'कृष्णार्पणमस्तु।'
वहाँ से जा रहे थे एक महात्मा। महात्मा ने पूछा- 'मैया,चन्दन(चढ़ाती) हो ? आरती उतारती हो ? फूल (चढ़ाती) हो? जय-जयकार शंख बजाती हो ? हमने सब भक्तों को सुना, लेकिन तू तो कूड़ा चढ़ा रही है।
'उस गोपी ने नीचे आकर महात्मा का हाथ पकड़ लिया। वह गोपी थी बड़ी तेज। उसने कहा-'मेरा धर्म बिगाड़ता है ?'
'क्यों ?'
'प्राण उसे दिया, मन उसे दिया, जीवन उसे दिया तो कूड़ा देने के लिए किसी और का हाथ (पकड़ूँ)?
'यह अनन्यता है।......'
No comments:
Post a Comment