सुप्रभात जी
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इस जीवन को क्षनिक कहा गय है। यहां तक कि 'न जाने इन स्वांस को फिर आवन होय न होय' जो श्वास हम लेते हैं, उसका भी विश्वास नहीं कि बाहर वापस आये या नहीं। इसलिए हमें अमूल्य अवसर मिला है कि इस शरीर से जो अच्छा कार्य हो सके करें, व्यर्थ में समय को सोकर व्यतीत न करें। इस देह से ही परमात्मा के अखंड आनंद को प्राप्त करें। इस मूल्यवान शरीर को प्राप्त कर इसे व्यर्थ नष्ट न करें।
जन्म से ही हमारे शरीर के सभी नाशवान हैं। ये सब देखते ही देखते मिट जाएंगे, इस पलभर के जीवनरूपी नाटक में ही उलझ कर न रह जायें। जीवन के एक एक क्षण को स्त्कर्म में लगा दें। इसकी उपयोगीता को समझ कर सुभ विचारों से भर दें.।
सिर दे देने पर भी अर्थात अपना सर्वस्व समर्पित कर लाखों करोडो मोहरें लुटा देने पर भी अमूल्य जीवन का एक क्षण लौटाया या बचाया नहीं जा सकता। ऐसे अमूल्य जीवन का एक भी पल अगर व्यर्थ चला जाता है तो उसके बराबर संसार में कोई हानी नही
इसलिय जल्दी से शरीर रहते प्रमात्मा को प्राप्त कर लेना चाहिए नही तो घोर विनाश है...
प्रणाम जी
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