Thursday, July 30, 2015

सुप्रभात जी

सास्त्र पुरान भेख पंथ खोजो , इन पैंडों में पाइए नाहीं ।

सतगुर न्यारा रहत सकल थें , कोई एक कुली में काँही ।। (श्री मुख वाणी- किरन्तन ५/७)

शास्त्रों और पुराणों के विद्वानों, तरह-तरह की वेशभूषा धारण करने वाले महात्माओं और विभिन्न पन्थों में तुम भले ही खोजते रहो, लेकिन सदगुरु का स्वरूप नहीं मिलेगा । सदगुरु का स्वरूप इन सबसे अलग ही होता है । वास्तविक सदगुरु तो इस कलयुग में कहीं एक ही होगा ।

सदगुरु वही है जो धर्म ग्रन्थों के द्वारा वास्तविक सत्य को प्रकट करे । सभी धर्मग्रन्थों का मूल आशय एक ही होता है । सभी मनीषियों के कथनों में एकरूपता होती है, लेकिन अज्ञानी लोग अलग अलग समझते हैं ।

वेद, उपनिषद, दर्शन, सन्त वाणी, कुरान तथा बाइबल इत्यादि में एक ही परब्रह्म को अनेक प्रकार से बताया गया है । छः शास्त्रों के रचनाकारों ने सृष्टि बनने के छः कारणों की अलग-अलग व्याख्या की है । उसमें तत्वतः कोई भेद नहीं है, किन्तु अल्पज्ञ लोग भेद मानकर लड़ते रहते हैं । सत्यदृष्टा मनीषियों का कथन सभी कालों में समान ही होता है ।

प्रणाम जी

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